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________________ 'पुराणनिर्माणाधिकरणम्' आपके कर-कमलों में है। वेदमन्त्रों में दृष्ट 4 प्रधान विषयों-1. यज्ञ 2. विज्ञान 3. इतिहास तथा 4 स्तोत्र अथवा स्तुति—में तृतीय इतिहास के साथ यह विषय सम्बद्ध है। यह विषय चतुष्टय ही वेद में प्रमुख रूप से है तथा प्राधान्येन निरूपणीय है, यह ओझाजी का प्रतिज्ञा वाक्य है जो इस रूप में अनेकत्र दोहराया गया है यज्ञोऽथ विज्ञानमथेतिहास: स्तोत्रं तदित्थं विषया विभक्ताः। वेदे चतुर्धा त इमे चतुर्भिर्ग्रन्थैः पृथक्कृत्य निरूपणीयाः॥ अथ के स्थान पर च, तथा स्तोत्रं के स्थान पर स्तुतिः जैसे तनिक से परिवर्तन के साथ यह सङ्कल्पवाक्य ब्रह्मसिद्धान्त, ब्रह्मविनय तथा दशवादरहस्यम् आदि में पढ़ा गया है। । इतिहास के साथ ही पुराण को प्राचीन वाङ्मय में नित्यसहचर द्वन्द्व के रूप में लिया गया है, अतः किसी एक के ग्रहण से दूसरे का ग्रहण स्वतः हो जाता | विषय के महाग्रथन स्वरूप को बताते हुए ओझाजी का लेख है—पुराण समीक्षाग्रन्थस्य विश्वविकासाभिधानस्य 1. पुराणोत्पत्तिप्रसङ्गाभिधेसन्दर्भेपुराणशास्त्रीय-ज्ञानम्। यह 'पुराणोत्पत्तिप्रसङ्ग' नाम के ग्रन्थ का प्रथम वाक्य है। 'विश्वविकास' नाम के अथवा विश्वविकास का अभिधान-कथन-करने वाले के ये दोनों अर्थ प्रासङ्गिक है और इसी अभिप्राय को लेकर 'पुराण समीक्षा' के साथ अन्वित हैं। पुराण सृष्टि का घटक तत्त्व भी है तथा इस विषय का बोधकशास्त्र भी है, समीक्षा दोनों की ही अभीष्ट है, फलस्वरूप इस वाक्य के दो अभिप्राय हैं, सृष्टि घटक तत्त्व की सर्वतोभावेन विश्वग्रथन परक दर्शन प्रक्रिया, |जिसे विश्वविकास नाम से व्यवहृत किया जा सकता है, उस पुराण के उद्भव प्रसङ्ग मात्र को देखना तथा उसका कथन करना, इन दोनों अभिप्राय में पुराणब्रह्माण्ड के शास्ता का पुराणशास्त्र नाम से पहिचानने का यत्न पुराणशास्त्राभिज्ञान' है। Jain Education International For Personal & Private Use Only - www.ainelibrary.org FINEST ITTER ELEEER ODEEP HTHE नि
SR No.004100
Book TitlePuran Nirmanadhikaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Oza, Chailsinh Rathod
PublisherJay Narayan Vyas Vishwavidyalay
Publication Year2013
Total Pages118
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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