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________________ पुराणनिर्माणाधिकरणम् मननधर्म की एकतानता से इन रहस्यों को अनावृत करना होगा। इसी समाधान परम्परा का भगवान् वेद भी स्पष्ट निर्देश कर रहे हैं उत त्वः पश्यन्न ददर्श वाचं, उत त्वः शृण्वन्न शृणोत्येनाम्। उतो त्वस्मै तन्वं विसने जायेव पत्ये उशती सुवासा॥ ___(ऋग्वेद १०/७१/४) इसका तात्पर्य है कि कतिपय अध्ययनशील विद्वान् इस परम्परा को समलंकृत कर रहे हैं, किन्तु कतिपय अन्य इन मन्त्रों के अर्थों पर दृष्टि डालकर भी देखने से वश्चित रह जाते हैं, कुछ अन्य विद्वान् इस वाग्देवी के स्वरूप श्रवण से भी पराङ्मुख प्रतीत होते हैं। कुछ ऐसे आत्मनिष्ठ आर्षमानव हैं जिनके लिए वाग्देवी स्वयं अपने सम्पूर्ण स्वरूप को उसी प्रकार प्रकट कर देती है जैसे पतिव्रता पत्नी अपने स्वरूप को पति के समक्ष। पुराणशास्त्र अपनी आख्यानोपाख्यानान्विता इतिवृत्तशैली से सुप्रसिद्ध है जैसा कि सुख्यात पुराणवचन है आख्यानैश्चाप्युपाख्यानैर्गाथाभिः कल्पशुद्धिभिः। . पुराणसंहितां चक्रे भगवान् बादरायणः॥ भगवान् बादरायण ने ही वेदसंहिताओं एवं पुराणसंहिताओं का संकलन किया-वेदसंहिताओं के संकलन से वे 'वेदव्यास' एवं पुराणों के संकलन से पुराणपुरुष संज्ञा से अभिहित हुए। - पुराणों के समन्वय के बिना ब्राह्मण ग्रन्थों को समझना अकल्पनीय है। मैक्समूलर महोदय द्वारा ब्राह्मण ग्रन्थ विषयक अधोलिखित मत उनकी अज्ञानता का ही सूचक है “The Brahmanas represent no doubt a most interesting phase in history of Indian minds but judged by themselves as literary productions they are most disappointing.......................These works deserve to be studied as the physician studies twaddle of idiots and the raving madness.” ___मैक्समूलर ने अपने संस्कृत-साहित्य का इतिहास' नामक निबन्ध में ३८९ पृष्ठ पर अपने आवेश को इन उद्गारों में प्रकट कर इन ग्रन्थों के प्रति अपनी अल्पज्ञता का ही परिचय दिया है। पण्डित मोतीलाल शास्त्री ने शतपथ ब्राह्मण के प्रथम खण्ड की भूमिका में मैक्समूलर के मत का उल्लेख करते हुए वेद-ब्राह्मणों के रहस्य को समझने के लिए पुराणों के अनुशीलन पर बल दिया है एवं पुराणसमीक्षान्तर्गत विरचितग्रन्थों के साथ पुराणों की प्राचीनता की ओर भी वेदविशेषज्ञों का ध्यानाकर्षण किया है तथा वेद संहिताओं के सदृश पुराण संहिताओं का संकलन ही स्वीकार किया है। वेदों के समान पुराण भी ईश्वरीय ज्ञान है, वेदव्यास पुराणसंहिता' के संकलनकर्ता है रचयिता नहीं। प्रमाणरूप में पण्डित मधुसूदन ओझा द्वारा पुराणनिर्माणाधिकरणम्' में दिए गए उद्धरण द्रष्टव्य हैं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004100
Book TitlePuran Nirmanadhikaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Oza, Chailsinh Rathod
PublisherJay Narayan Vyas Vishwavidyalay
Publication Year2013
Total Pages118
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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