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________________ Jain Education International पुराणनिर्माणाधिकरणम् १ २ ३ काश्यपोऽहं च सावर्णिः रामशिष्योऽकृतव्रणः । अधीमहि व्यासशिष्याच्चत्वारो मूलसंहिताः ॥ ६ ॥ ( भाग १२ स्कं. ७ अ. ४-६ श्लो. ) प्राप्यव्यासात् पुराणादि सूतो वै लोमहर्षणः । सुमतिश्चाग्निवर्चाश्च मित्रायुः शांशपायनः ॥ कृतव्रणोऽथ सावर्णिः षट् शिष्यास्तस्य चाभवन् । शांशपायनादयश्चक्रुः पुराणानां तु संहिताः ॥ ॥ इतिप्रकारान्तरेण पुराणावतारः ॥ ॥ इति पुराणनिर्माणाधिकरणम् ॥ १११ मैंने, काश्यप, सावर्णि, राम शिष्य अकृतव्रण इन चारों ने व्यास के शिष्य लोमहर्षण मूल संहिता का अध्ययन किया । ( भाग १२ स्क. ७ अ. ४-६ श्लोक ) सूत लोमहर्षण ने व्यास से पुराण आदि का ज्ञान प्राप्त किया। उनके सुमति, अग्निवर्चा, मित्रयु, शांशपायन, अकृतव्रण और सावर्णि — ये छः शिष्य हुए। शांशपायन आदि ने पुराणों की संहिताओं का निर्माण किया । यह है प्रकारान्तर से प्रतिपादित पुराण - अवतार । ॥ पुराण निर्माणाधिकरण पूर्ण ॥ For Personal & Private Use Only (अग्निपुराणम्) www.jainelibrary.org
SR No.004100
Book TitlePuran Nirmanadhikaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Oza, Chailsinh Rathod
PublisherJay Narayan Vyas Vishwavidyalay
Publication Year2013
Total Pages118
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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