SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०२ पुराणनिर्माणाधिकरणम् एता एव चतस्रः संहिता अवलम्ब्य सर्वपुराणानामाद्यं ब्रह्मपुराणमुच्यते-इत्याह मैत्रेयं प्रति भगवान् पराशरः चतुष्टयेनभेदेन' संहितानामिदं मुने। आद्यं सर्वपुराणानां पुराणं ब्राह्ममुच्यते॥२॥ (वि.पु. ३/६/१९) ब्रह्मपुराणस्य सर्वपुराणादिभूतत्वं प्रतिपादयता भगवता पराशरेण ब्राह्मपुराणातिरिक्तपुराणानां तदुत्तरभावित्त्वमुक्तप्रायम्। ब्राह्मपुराणस्य संहिताचतुष्टयमूलकत्वं प्रतिपादयता च सर्वेषामेव ब्रह्मपुराणादिपुराणानां तादृशसंहिताचतुष्टयमूलकत्वमपि निगदितप्रायमेव। एवमेव सूतसंहितादि-संहिताचतुष्टय्या मूलभूता वेदव्यासप्रणीता पुराणसंहितैवेति वेदव्यासस्यैव सर्वपुराणमूलप्रवर्तकतामभिप्रयद्भिरुद्धोष्यते “अष्टादश पुराणानां कर्ता सत्यवतीसुतः" इति। वस्तुतस्तु तेषामष्टादशानामपि कथाप्रसङ्ग-प्रबन्धप्रस्तावका भिन्नकाला भिन्नोद्देश्या इन्हीं चार संहिताओं का आधार लेकर निर्मित सब पुराणों में ब्रह्मपुराण प्रथम कहा जाता है ऐसा भगवान् पराशर मैत्रय को कहते हैं हे मुने! इन चार पुराण संहिताओं की समष्टि से रचित सब पुराणों में प्रथम पुराण यह ब्रह्मपुराण कहा जाता है। ब्रह्मपुराण का सब पुराणों में आदिभूत होने का प्रतिपादन करते हुए भगवान् पराशर के द्वारा ब्रह्मपुराण से अतिरिक्त सब पुराणों का उससे उत्तरवर्ती होना भी प्रायः कह ही दिया। ब्रह्मपुराण के इस संहिताचतुष्ट्य मूलक होने का,प्रतिपादन करते हुए ब्रह्मपुराण आदि सभी पुराणों का इस प्रकार संहिताचतुष्ट्य मूलक होने का कथन भी प्राय कर दिया है। इस प्रकार सूत संहिता आदि चारों संहिताओं की मूलभूत वेदव्यास प्रणीत संहिता ही है, अतः वेद व्यास की ही समस्त पुराण संहिताओं का मूल प्रवर्तकता के अभिप्राय से यह उद्घोषित किया जाता है "अठारह पुराणों के कर्ता सत्यवती सुत वेदव्यास हैं।" ___ वास्तविकता तो यह है कि उन अठारह ही पुराणों के भी कथा प्रसङ्गानुसार ग्रन्थों को प्रस्तुत करने वाले भिन्न-भिन्न काल के भिन्न उद्देश्य वाले भिन्न-भिन्न ही मुनि हुए हैं, १. 'चतुष्टयेनाप्येतेन' इति मूलपाठ आसीत् सोऽत्र परिवर्तितः, विष्णुपुराण ३/६/१८ पाठ मनुसृत्य। तत्र विष्णुचित्तीय-आत्मप्रकाश-व्याख्ययोरप्ययमेव पाठः, इति नात्रकश्चनपाठभेदः। २. अष्टादश पुराणानां वक्ता सत्यवतीसुतः। स्कन्द पु. रेवा खण्ड १/१३ अष्टादशपुराणनि कृत्वा सत्यवतीसुतः । मत्स्य पु. ५३/७०, देवीभागवत १.३.२४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004100
Book TitlePuran Nirmanadhikaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Oza, Chailsinh Rathod
PublisherJay Narayan Vyas Vishwavidyalay
Publication Year2013
Total Pages118
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy