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जैनधर्म दर्शन में तनाव और तनावमुक्ति
से हम इसे इस प्रकार भी कह सकते हैं कि जो तनाव के हेतु हैं, वे ही तनावमुक्ति के हेतु बन जाते हैं और जो तनावमुक्ति के हेतु हैं, वे ही तनाव के कारण बन जाते हैं, जैसे- सम्पत्ति की प्राप्ति हमें तनावमुक्त भी करती है और तनावग्रस्त भी बनाती है। भगवतीसूत्र में जब भगवान् महावीर से पूछा गया कि सोना अच्छा है या जागना? तो उन्होंने कहा"पापियों का सोना अच्छा है और धार्मिकों का जागना अच्छा है। इस प्रकार, अनेकांतवाद सापेक्षिक-दृष्टि से विरोधों को समाप्त करने का एक माध्यम है।
___ दैनिक जीवन में तनाव-प्रबंधन के लिए अनेकांतवाद के व्यावहारिक-पक्ष को अपनाना होगा। अनेकांत के इस व्यावहारिक-पक्ष को सर्वप्रथम सिद्धसेनदिवाकर ने स्पष्ट किया है। उन्होंने कहा था"संसार के एकमात्र गुरु उस अनेकांतवाद को नमस्कार है, जिसके बिना संसार का व्यवहार भी असम्भव है।"553 वास्तव में अगर देखा जाए, तो व्यवहार-जगत् में अनेकांत ही विरोधों के समाहार का सिद्धांत है। उसके बिना जगत् का व्यवहार नहीं चल सकता। अगर व्यवहार-जगत् में अनेकांतिक सोच को न अपनाया जाए, तो विरोधों का समाहार ही सम्भव नहीं होगा। परिवार हो या समाज, देश हो या विदेश, सम्पूर्ण विश्व में यदि अनेकांतवाद को व्यवहार-क्षेत्र में नहीं अपनाया गया, तो परिवार ही क्या, सम्पूर्ण विश्व तनावग्रस्त बन जाएगा और मानव-जाति आपस में ही युद्ध कर-करके समाप्त हो जाएगी। एक औरत, जो किसी की भाभी है, तो किसी की मामी, किसी की मौसी या चाची है, तो किसी की माँ भी है। इसे प्रत्येक को अपनी-अपनी अपेक्षा से समझना होगा। यहाँ एकान्त रूप से कोई निर्णय नहीं हो सकता।
एक व्यक्ति के लिए एक ही हेतु तनावमुक्ति का कारण है, किन्तु वही हेतु दूसरे व्यक्ति में तनाव उत्पन्न कर देता है। एक सुन्दर स्त्री, जिसकी वह पत्नी है, उसे तनावमुक्त करती है, वहीं दूसरे व्यक्ति में ईर्ष्या का विषय होकर तनाव का कारण बन सकती है। पुनः, वही स्त्री एक समय अपने पति को सुख–सन्तोष देकर तनावमुक्त करती है, तो दूसरे व्यक्तियों के लिए आकर्षण का केन्द्र कारण होने के कारण वह ईर्ष्या से ग्रसित अपने पति को और अपने आकर्षण के कारण दूसरों को भी तनावग्रस्त भी बनाती है।
562 भगवतीसूत्र -
सन्मति-तर्क-प्रकरण - 3/70
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