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________________ अध्याय १ : मोक्षमार्ग ५७ (गुणप्रत्ययिक अथवा क्षायोपशमिक) वह (अवधिज्ञान) संक्षेप में छह प्रकार का है - (१) आनुगामिक (२) अनानुगामिक (३) वर्द्धमान (४) हीयमान (५) प्रतिपातिक (६) अप्रतिपातिक । अवधिज्ञान के भेद और स्वामी - द्विविधोवधि :। २१। भवप्रत्ययोदेवनारकाणाम् १ ।२२। क्षयोपशमनिमित्तः२ षड् विकल्पः शेषाणाम् ।२३। अविधिज्ञान दो प्रकार का है । भवप्रत्ययिक (अवधिज्ञान) देवों और नारको को होता है । क्षायोपशमिक (अवधिज्ञान) छह प्रकार का है और वह शेष (मनुष्य एवं पंचेन्द्रिय संज्ञी तिर्यंच) को होता है । विवेचन - प्रस्तुत प्रथम सूत्र में अवधिज्ञान के प्रथमतः दो भेद बताये हैं और फिर यह बताया है कि वह किन-किन को प्राप्त होता है या हो सकता है तथा उसके छह अन्य भेदों की ओर संकेत किया गया है । सूत्रमें अवधिज्ञान के दो भेद बताये हैं - (१) भवप्रत्ययिक और (२) क्षायोपशमिक । किन्तु नन्दीसूत्र में क्षायोपशमिक के लिए गुण-प्रत्ययिक शब्द भी प्रयुक्त हुआ है । दोनों का ही भाव समान है । कर्मसिद्धान्त के अनुसार यह निश्चित है कि आत्मा की ज्ञान-शक्ति उस ज्ञान के आवरक कर्म के क्षयोपशम से ही प्रकट होती है । इस प्रकार अवधिज्ञान की उपलब्धि भी आत्मा को अवधिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से ही उपलब्ध होती है । . किन्तु यहां भवप्रत्ययिक और क्षायोपशमिक अथवा गुणप्रत्ययिक ये दोनों भेद केवल निमित्त की अपेक्षा बताये हैं । यद्यपि भवप्रत्ययिक अवधिज्ञान भी अवधिज्ञानावरणकर्म के क्षयोपशम से होता है; किन्तु इसके लिए प्रत्यक्षतः वर्तमान जीवन में तप (१) कुछ प्रतियो में 'तत्र भवप्रत्योनारकदेवानाम्' यह पाठ भी मिलता है; किन्तु अर्थ में भेद नहीं हैं । (२) कुछ प्रतियों में 'यथोक्त निमित्त' ऐसा पाठ भी है । किन्तु नंदीसूत्र, स्थानांग सूत्रआदि आगमों के अनुसार होने से हमने प्रस्तुत पाठ स्वीकार किया है। -संपादक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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