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________________ ४.२ तत्त्वार्थ सूत्र निवृत्ति शुरू हो जाती है । यहीं से श्रेणी - आरोहण होता है । I यह गुणस्थान श्रेणी की आधार शिला है । श्रेणी दो हैं - ( १ ) क्षपक श्रेणी और (२) उपशम श्रेणी (९) अनिवृत्तिबादर गुणस्थान इस गुणस्थान में स्थूल कषायों की निवृत्ति की मात्रा बहुत बढ़ जाती है । - (१०) सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान इस गुणस्थान में संज्वलन लोभ का सूक्ष्म उदय ही रहता है । जिस प्रकार धुले हुए कपड़े में लाल रंग के दाग की बहुत ही हल्की सी लालिमा शेष रह जाती हैं, इसी प्रकार इस गुणस्थान में भी सूक्ष्म लोभ ही शेष रह जाता है । - इस (११) उपशान्त कषाय वीतराग छद्मस्थ गुणस्थान गुणस्थान में कषाय पूरी तरह उपशान्त हो जाते हैं । यद्यपि वे सत्ता में रहते हैं किन्तु उदय में नहीं आते । इस गुणस्थान से जीव आगे नहीं बढ़ सकता । उसका निशचित रूप से पतन होता है । पतन दो प्रकार से होता है (१) आयुक्षय से और (२) गुणस्थान का काल ( अन्तर्मुहूर्त) पूरा होने से । यदि आयुक्षय से पतन होता है तो वह जीव अनुत्तर विमान में देव बनता है । गुणस्थान का समय पूरा होने पर उपशांत मोहनीयकर्म उदय में आ जाता है । कषायोदय के कारण जीव पतित होकर नीचे के गुणस्थानों में पहुंच जाता है । I (१२) क्षीणकषाय वीतराग छद्मस्थ गुणस्थान में मोहनीय कर्म का सम्पूर्ण रूप से क्षय हो जाता है । Jain Education International - (१३) सयोगिकेवली गुणस्थान चांरो घाती कर्मों (मोहनीय, ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, अन्तराय) के सम्पूर्ण क्षय से इस गुणस्थान की प्राप्ति होती है, वह जीव सर्वज्ञ, जिन बन जाता है । केवलज्ञान, केवलदर्शन, y अनन्तसुख और अनन्तवीर्य प्रगट हो जाते हैं । वह जीवन्मुक्त परमात्मा होता हैं। तीनों लोक और तीनों काल उसके हस्तामलकवत् होते हैं । वह लोकालोकदर्शी और ज्ञानी होता है । - - - (१४) अयोगिकेयली गुणस्थान इस गुणस्थान में केवली भगवान योगों का निरोध करके शैलेशी अवस्था प्राप्त करते हैं और मुक्त हो जाते For Personal & Private Use Only इस गुणस्थान www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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