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________________ ३६ तत्त्वार्थ सूत्र विचारणा के उपाय बताये गये हैं । (१) निर्देश - वस्तु के नाम मात्र अर्थात् नाम का कथन करना; उदाहरणार्थ - यह अजीव है, यह जीव है आदि । (२) स्वामित्व- अर्थात् वस्तु का अधिकारी । उदाहरणार्थ - सम्यग्दर्शन की उत्पति किस जीव को हो सकती हैं, सम्यग्दर्शन का अधिकारी जीव ही बन सकता है, अजीव नहीं । (३) साधन - वस्तु (यथा-सम्यग्दर्शन) की उत्पत्ति का कारण । ' (४) अधिकरण - अमुक वस्तु (यथा-सम्यक्त्व) का आधार । (५) स्थिति - वस्तु (उदाहरणार्थ सम्यक्त्व) की काल मर्यादा; जैसे-सम्यक्त्व इतने समय तक ठहर सकता है । . (६) विधान - वस्तु के भेद अथवा प्रकार; जैसे-सम्यग्दर्शन कितने प्रकार का होता है ? इन छहों उपायों को सम्यग्दर्शन के सन्दर्भ में इस प्रकार घटित किया जा सकता है - तत्त्व अथवा आत्मा के प्रति रुचि सम्यग्दर्शन का स्वरूप है, यही निर्देश शब्द से कहा गया है । जीव ही सम्यग्दर्शन का अधिकारी अथवा स्वामी बन सकता है, यह स्वामित्व है । | साधन के दो भेद हैं, अन्तरंग और बाह्य । सम्यग्दर्शन के अन्तरंग कारण हैं, दर्शनमोहनीय कर्म की मिथ्यात्व आदि तीन तथा चारित्र-मोहनीय कर्म की अनन्तानुबन्धी क्रोध-मान-मायालोभ-ये चार; कुल इन सात प्रकृतियों का क्षय, उपशम अथवा क्षयोपशम। बाह्य साधन शास्त्र पढ़ना, गुरु-उपदेश सुनना, जातिस्मरणज्ञान आदि हैं ___ सम्यग्दर्शन जीव का भाव अथवा परिणाम होने के कारण जीव में ही रहता हैं, अतः जीव ही इसका अधिकरण हैं । सम्यग्दर्शन की काल-मर्यादा स्थिति शब्द से द्योतित की गई हैं, जैसेऔपशमिक सम्यग्दर्शन का काल एक मुहूर्त मात्र है और क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन का उत्कृष्ट काल ६६ सागरोपम है । इसी प्रकार औपशमिक सम्यग्दर्शन सान्त हैं, क्योंकि वह होकर भी स्थिर नहीं रहता और क्षायिक सम्यग्दर्शन अनन्त हैं, क्योंकि वह एक बार होने पर छूटता नहीं,(जीव के साथ सिद्धावस्था में भी रहता है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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