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३४ तत्त्वार्थ सूत्र
((जिसमें ) द्रव्यों के सब भाव सब प्रमाणों और सब नयों से ज्ञात कर लिए हैं, ( उसको) विस्तार रुचि जानना चाहिए ।
तत्त्वज्ञान के साधन
प्रमाणनयैरधिगमः । ६ ।
प्रमाण और नयों से (तत्त्वादि का विस्तारपूर्वक ) ज्ञान प्राप्त होता है। विवेचन प्रस्तुत सूत्र में तत्त्वादि तथा सम्यग्दर्शनादि को जानने के दो साधन बताये गये हैं
प्रमाण और नय |
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प्रमाण तथा नय का भेद प्रमाण द्वारा किसी वस्तु का सामान्य समग्र कथन किया जाता है और नयों द्वारा विशेष कथन होता है। अतः प्रमाण से विचार करने के बाद वस्तु के स्वरूप को भली-भांति समझने के लिए विभिन्न नयों द्वारा भी विभिन्न अपेक्षाओं से विचार करना चाहिए ।
गया हैं
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है, इसका कारण यह है कि जो है, वही ज्ञान प्रमाण होता है
प्रमाण का लक्षण और भेद
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प्रमाण के दो मुख्य भेद
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हैं
(१) प्रत्यक्ष और ( २ ) परोक्ष ।
यद्यपि प्रमाण के चार भेद भी प्ररूपित हैं - (१) प्रत्यक्ष (२) परोक्ष, (३) अनुमान और (४) आगम । किन्तु इन चारों का समावेश उपरोक्त दो भेदों में हो जाता है ।
वस्तु के
।मिथ्या
सम्यग्ज्ञान को प्रमाण कहा जाता
सत्य स्वरूप का वर्णन कर सकता ज्ञान प्रमाण नहीं होता ।
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जो ज्ञान सीधा आत्मा से होता है, वह प्रत्यक्ष प्रमाण है और जिसमें मन, इन्द्रियों आदि की सहायता अपेक्षित होती है, वह परोक्ष प्रमाण है । नय का लक्षण और भेद प्रमाण द्वारा कहे हुए सामान्य स्वरूप का नय विशेष कथन करता है । जैसे 'मनुष्य है' यह सामान्य कथन प्रमाण है । इसके दो हाथ हैं, दो पांव, दो आंख, नाक आदि एक-एक अंग-उपांग की अपेक्षा विशेष - विशेष कथन नयों का विषय हैं ।
यद्यपि नैगम आदि नयों के अनेक भेद हो सकते हैं; जैसा कि कहा
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जावइया वयणपहा, तावइया चेव होंति णयवाया
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- सन्मति तर्क ३/४७
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