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________________ दो शब्द... 'तत्त्वार्थ सूत्र' की महता को शब्दों में विशद् करना सूर्य को दीया बताने जैसा है । फिर परम श्रद्धेय जैन दिवाकर पूज्य श्री चोथमलजी महाराज सा. के विद्वान शिष्य पूज्य केवलमुनिजी द्वारा व्याख्यायित इस ग्रंथ का पुनर्मुद्रन का गुरुतर कार्य ग्रंथ की अनुपलब्धता को दूर करने के महान उद्देश को रखकर की जा रही है। मूल व्याख्या को 'जस का तस' रखकर पूज्य उपाध्याय केवलमुनिजी की मौलिक व्याख्या को अबधित रखा गया है। 'तत्त्वार्थ सूत्र' पर आधारित प्रतियोगिता के माध्यम से इस सूत्र की गहराई, तन्मयता और एकाग्रता से पठन होगा और ज्ञान की पीपासा शांत होगी । इस शुभकांक्षा के साथ ! श्री कमला साधनोदय ट्रस्ट द्वारा : अभिजीत सतिशजी देसरडा बंगला नं. १३, राजनगर सोसायटी प्रेमनगर (गणपति मन्दिर के बाजू में) पुना - ४११ ०३७. मो. ९८५०८१०१०१ | अॅड. सुभाष संकलेचा (जालना) फोन : ९४२२२१५७३३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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