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________________ मोक्ष ४७१ गुण को दृष्टि में रखा जाय तो उनमें कोई भेद नहीं, सभी समान हैं, सभी समान रूप से अव्याबाध सुख भोग रहे हैं । उनमें गति आदि लेकर किसी भी भेद का अस्तित्व ही नहीं है तथापि भूतकाल की अपेक्षा उनमें भेद किया जा सकता है यानि भेद की कल्पना की जा सकती है ।। प्रस्तुत सूत्र की रचना इसी भेद दृष्टि को लेकर की गई है। (१) क्षेत्र - वर्तमान में तो सभी सिद्धों का एक ही क्षेत्र है सिद्धस्थान। सभी सिद्ध भगवन्त वही विराजित हैं । किन्तु भूतकाल की अपेक्षा उनका क्षेत्र ढाई द्वीप में अवस्थित १५ कर्मभूमियाँ है । ढाई द्वीप हैं - जंबूद्वीप, धातकीखण्डद्वीप और पुष्करवरार्धद्वीप । ढाई द्वीप में अवस्थित पन्द्रह कर्मभूमियाँ है - ५ भरत, ५ एरवत और ५ विदेह क्षेत्र । यह ढाई द्वीप सम्पूर्ण मनुष्य क्षेत्र है । इसका सम्पूर्ण विस्तार ४५ लाख योजन है। अतः सिद्धशिला का विस्तार भी ४५ लाख योजन है । यानी सिद्धशिला ४५ लाख योजन लम्बी चौड़ी है । वह मध्य में ८ योजन मोटी है और घटते-घटते दोनों किनारों पर मक्खी के पाँख के समानपतली हो गई है। वह श्वेत वर्णी, स्वभाव से निर्मल और उत्तान (उलटे) छाते के आकार की है । सिद्धशिला के एक योजन ऊपर, लोक के अग्रभाग में ४५ लाख योजन लम्बे-चौड़े और ३३३ धनुष ३२ अंगुल ऊँचे क्षेत्र में अनन्त सिद्ध भगवान विराजमान है। यानि इस एक योजन का जो ऊपरी कोस है, उसके छठेभाग में सिद्ध भगवान अवस्थित है । यह क्षेत्र की अपेक्षा विचार (विकल्प) है । (२) काल- वर्तमान की दृष्टि से सिद्ध होने का कोई काल नहीं है, क्योंकि सिद्ध होते ही रहते है। किन्तु काल के लौकिक दृष्टि से अवसर्पिणी, उत्सर्पिणी, आरा आदि भेद किये जा सकते है । जैसे भरतक्षेत्र में चौथे काल में ही सिद्ध हो सकते हैं । विदेह क्षेत्र में मुक्ति का अनवरत क्रम है। (३) गति - वर्तमान की अपेक्षा ती सभी मुक्त जीवों की एक ही गति है -सिद्ध गति और भूतकाल की अपेक्षा विचार करने पर सभी मनुष्य गति से ही सिद्ध होते हैं । (४) लिंग - लिंग के दो आशय है-(१) वेद और (२) लक्षण या Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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