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________________ बन्ध तत्त्व ३७७ कार्मणशरीरनामकर्म इस कर्म के उदय से कार्मण शरीर की रचना होती है। यह शरीर आत्मा के साथ लगे हुए ( संबद्ध) पुदग्लो का पिण्ड है। यह शरीर प्रत्येक संसारी आत्मा के होता है । ( १०-१४ ) (४) अंगोपांगनामकर्म इस कर्म के उदय से जीव के शरीर में अंग और उपांगों की रचना होती है । - अंग ८ हैं दो भुजाएँ, तथा अँगुलियाँ आदि उपांग है । - - औदारिक, वैक्रिय और आहारक शरीर की अपेक्षा अंगोपांगनामकर्म के ३ भेद है (अ) औदारिक अंगोषांगनामकर्म (ब) वैक्रिय अंगोपांगनामकर्म और (स) आहारक आंगोपांगनामकर्म । दो जंघाएँ, पीठ, पेट, छाती और मस्तक अपने नाम के अनुरूप ये तीनों कर्म अंग और उपांगों की रचना करते हैं । (१५-१७) (५) शरीरबंधननामकर्म इस कर्म के उदय से पहले ग्रहण किये हुए औदारिक आदि शरीर - पुद्गलो के साथ नये ग्रहण किये हुए औदारिक आदि पुदग्लों का बन्धन होता है। - Jain Education International चूंकि शरीरी औदारिक आदि के भेद से ५ हैं, इसलिए इस शरीरबंधन नाम कर्म के भी ५ भेद हैं (अ) औदारिकशरीरबंधनामकर्म (ब) वैक्रिय शरीरबंधनानामकर्म (स) आहारकशरीरबंधन नामकर्म (द) तैजस्शरीर बंधनानामर्क और (य) कार्मणशरीरबंधनानामकर्म । परमाणु (जैनदर्शन के अनुसार यह स्कन्ध है, जिसे वैज्ञानिक परमाणु कहते हैं) के क्षेत्र में आधुनिक विज्ञान ने जो प्रगति की है उसमें अधुनातन खोज है टी. ई. फिलेमिना (Tunnelling of Electrons Fillemina ) । इस खोजसे परमाणुओं के बंधन को स्पष्ट देखा जा सका है । आधुनिक विज्ञान ने ऐसे सूक्ष्मदर्शक ( Microsocpe) का निर्माण कर लिया है जो वस्तु को उसके मूल आकार से तीन करोड़ गुना करके दिखाता है । इस यंत्र से वैज्ञानिकों ने देखा कि जब दो परमाणु पास आते हैं, एकदूसरे से सटते हैं तो उनके इलेक्ट्रोन्स परस्पर एक-दूसरे में संक्रमित होते हैं, और दोनों ही परस्पर बंध जाते हैं, दोनों का बंधन हो जाता है, एक क्षेत्रावगाह की स्थिति बन जाती है । इसी प्रकार औदारिक आदि शरीरों के पूर्वगृहीत पुद्गल परमाणुओं का नये ग्रहण किये हुए परमाणुओं से बंधन होता है । १८-२२ । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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