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________________ बन्ध तत्त्व ३६७ (१) चक्षुदर्शनावरण - यह आँखों द्वारा होने वाले सामान्य सत्ता के प्रतिभास को रोकता है, उस पर आवरण डालता है । (२) अचक्षुदर्शनावरण - यह चक्षु के अतिरिक्त चारों इन्द्रियों (स्पर्शन, रसना, घ्राण और श्रोत्र) द्वारा होने वाले सामान्य प्रतिभास को आवरित कर देता है । (३) अवधिदर्शनावरण - रूपी पदार्थो के साक्षात प्रतिभास को रोकता है । (४) केवलदर्शनावरण - समस्त रूपी-अरूपी पदार्थों के साक्षात प्रतिभास को रोकता है । (५) निद्रा - व्यक्ति सरलता से जाग जाये ऐसी नींद । (६) निद्रानिद्रा- कठिनता से हाथ-पाँव हिलाने पर जाग सके, ऐसी नींद । (७) प्रचला- खड़े-खड़े या बैठे-बैठे सो जाना । (८) प्रचला-प्रचला - चलते-चलते नींद ले लेना । प्रकारान्तर से प्रचला ऐसी नींद को भी कहा गया है जब शोक, खेद, मद आदि के प्रभाव से बैठे-बैठे ही पाँचो इन्द्रियों का व्यापार हिलना- डुलना, क्रिया-कलाप) रुक जाय तथा प्रचला-प्रचला ऐसी प्रगाढ़ निद्रा होती है जिसमें मुंह से लार टपकती है, व्यक्ति हाथ-पैर चलाया करता है, किन्तु सुई चुभोने से भी नहीं जागता । (९) स्त्यानगृद्धि - जागृत अवस्था में सोचा हुआ काम, इस निद्रा में, व्यक्ति सोता हुआ ही कर डालता है, लेकिन उसे कुछ मालूम ही नहीं रहता, जागने पर स्वयं की चकित रह जाता है कि यह काम मैने कैसे और कब कर दिया । इस निद्रा की दो विशेष बाते हैं - (१) प्राणी में अद्भुत बल आ जाता है । सामान्य मनुष्य भी हाथी का दाँत उखाड़ सकता है । (२) यदि पहले अन्य गति की आयु न बँधी हो तो ऐसा जीव निश्चित नरक में जाता है । आगम वचन - सातवेदणिजे य असायावेदणिज्जे . - प्रज्ञापनापद, २३, उ. २, सू. २९३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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