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________________ आचार-(विरति-संवर) ३४१ आगम वचन अहासंविभागस्स पंच अइयारा... तं जहा-सचित्तनिक्खेवणया सचित्तपेहणया कालाइक्कमे परोवएसे मच्छरिया । - उपासकदशांग, अ. १ (यथासंविभाग व्रत के पाँच अतिचार हैं, यथा - १. सचित्तनिक्षेपणता, २. सचित्तपिधानता, ३. कालातिक्रमदान, ४. परव्यपदेश और ५. मत्सरता।) अतिथि संविभाग व्रत के अतिचार - सचित्तनिक्षेपपिधानपरव्यपदेशमात्सर्यकालातिक्र माः ।३१। (१) सचित्तनिक्षेप (२) सचित्तपिधान (३) परव्यपदेश (४) मात्सर्य और (५) कालातिक्रम-अतिथि संविभांग व्रत के यह पांच अतिचार है । विवेचन - अतिथि संविभाग व्रत के यह पाँचों अतिचार सर्वविरत श्रमण की अपेक्षा हैं; क्योंकि सचित्त आदि वस्तुओं का त्याग उन्ही के होता है । इन अतिचारों का स्वरूप इस प्रकार है - (१) सचित्तनिक्षेप- सचित्त वस्तु आदि में आहार रख देना ।। (२) सचित्तपिधान - सचित्त वस्तु से आहार ढक देना । (३) परव्यपदेश - दान न देने की भावना से अपनी वस्तु के पराई बता देना, अथवा दूसरे की वस्तु देकर अपनी बता देना । (४) मात्सर्य - ईर्ष्या अथवा अहंकार की भावना से दान देना । (५) कालातिक्रम - समय पर दान न देना, असमय में दान के लिए कहना । आगम वचन - ____ अपच्छिम मारणं तिय संलेहणा झूसणाराहणाए पंच अइयारा . जाणियव्वा न समायरियव्वा, तं जहा इहलोगासंसप्पओगे परलोगासंसप्पओगे जीवियासंसप्पओगे मरणासंसप्पओगे कामभोगासंसप्पओगे । - (उपा. १) . (आयु. के अन्तिम भाग मरण समय में की जाने वाली संलेखना के पाँच अतिचार जानने चाहिए, इनका समाचरण नहीं करना चाहिए । वे अतिचार है - (१) इहलोकाशंसाप्रयोग (२) परलोकाशंसाप्रयोग (३) जीविताशंसाप्रयोग (४) मरणाशंसाप्रयोग और (५) कामभोगप्रशंसाप्रयोग । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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