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________________ आचार-(विरति-संवर) ३३९ दुष्प्रणिधान के तीन अर्थ हैं - (१)दुरुपयोग करना, (२) जिस प्रकार उचित रूप से उपयोग करना चाहिए उस प्रकार उपयोग न करना और (३) दूषित रूप से उपयोग करना । यह तीनों ही अर्थ यहाँ घटित होते हैं । अनादर का आशय है भक्ति तथा रुचि का अभाव । सामायिक को यों ही बेगार की तरह पूरा कर देना । स्मृति-अनुपस्थापन का अभिप्राय है विस्मृति । सामायिक के पाठों को भूल जाना, सामायिक का समय स्मृति में न रहना, आज सामायिक की है या नहीं इस प्रकार का विभ्रम हो जाना आदि स्मृति-अनुपस्थापन है । आगम वचन - पोसहोववासस्स समणोवासएणं पंच अइयारा.. तं जहाअप्पडिलेहिए दुप्पडिलेहिय सिज्जा-संथारे... जाव सम्मं अणणुपालणया) - उपासक अ. १ (पौषधोपवास व्रत के पाँच अतिचार यह है - (१-२) अप्रतिलेखित दुष्प्रतिलेखित, अप्रमार्जित-दुष्प्रमार्जित शय्या संस्तारक, (३-४) अप्रतिलेखित दुष्प्रतिलेखित, अप्रमार्जित-दुष्प्रमार्जित उच्चार-प्रस्रवण भूमि, (५) प्रोष धौपवास सम्यगननुपालनता। प्रोषधोपवासव्रत के अतिचार अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जितोत्सर्गादाननिक्षेपसंस्तारोपक्र मणानादर- . स्मृत्यनुपस्थापनानि । १२९ । (१-३) अप्रत्यवेक्षित-अप्रमार्जित उत्सर्ग और आदान-निक्षेप तथा संस्तार का उपक्रम, (४) अनादर और (५) स्मृति अनुपस्थापन-यह पाँच अतिचार पौषधव्रत के हैं । .. विवेचन - पौषधोपवास व्रत के पाँच अतिचारों का स्वरूप यह है (१) अप्रत्यवेक्षित-अप्रमार्जित उत्सर्ग - आँखों से जीव आदि को देखना प्रत्यवेक्षित और कोमल उपकरण (रजोहरण आदि) से साफ करना प्रमार्जन कहलाता है । जीव आदि को भलीभांति देखे बिना और कोमल उपकरण से भूमि को साफ किये बिना ही शरीर-मल-मूत्र-श्लेम आदि का उत्सर्ग कर देना, फैंक देना, डाल देना-अप्रत्यवेक्षित-अप्रमार्जित उत्सर्ग नाम का अतिचार है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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