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________________ आचार-(विरति-संवर) ३२१ उपभोग-परिभोग की वस्तुओं की गणना इस प्रकार है - १. शरीर पौंछने का अंगोछा आदि २. दांत साफ करने का मंजन आदि. ३ नहाने के काम आने वाले आंवले आदि फल (साबुन) ४. मालिश के लिए तेल आदि ५. उबटन के लिए पीटी आदि. ६. स्नान के लिए जल ७. पहनने के वस्त्र ८. विलेपन के लिए चन्दन आदि (क्रीम आदि सुगन्धित पदार्थ) ९. फूल-पुष्पमाला १०. आभरण (आभूषण) ११२. धूप-दीप १२. पेय पदार्थ १३. पकवान्न मिठाई आदि १४. ओदन-भात आदि पानी में उबालकर पकाए जाने वाले भोज्य पदार्थ २५. सूप-दाल (pulses) आदि, १६. घी, तेल, गुड़ आदि विगय, १७. शाक (Green Vegetables) १८. माधुरक (dry and green fruits) १९. जीमण-भोजन के पदार्थ, २०. पीने का पानी, २१. मुख-वास इलायची आदि, २२ .वाहन-शकट, रथ, यान आदि, २३. जूते-चप्पल २४. शय्या-आसन २५. सचित्त वस्तुएं जो अग्नि आदि से अचित्त न हुई हों, हरे फल, कच्चा पानी आदि २६. भोजन के अन्य पदार्थ । ___यह सूची प्राचीन युग की है । वर्तमान युग में प्रचलित तथा नित्य उपभोग-परिभोग में आने वालो वस्तुओं; जैसे-स्कूटर, कार. टी.वी. टेप ट्रांजिस्टर आदि भी इन्ही वस्तुओं के अन्तर्गत समाविष्ट होते है । कर्मादान उन व्यवसायो को कहा गया है, जिनमें अत्यधिक आरम्भ और हिंसा होती है तथा आत्म-परिणामों में क्रूरता की मात्रा अधिक रहती है । यह पन्द्रह है । १. अग्नि सम्बन्धी कार्य; जैसे ईंट, चूने का भट्टा लगाना, कोयले बनाना आदि । (अंगारकर्म) - २. जंगल का ठेका लेकर वृक्ष, घास आदि काटना (वनकर्म) ३. रथ, (स्कूटर, रिक्शा) आदि वाहन बनाकर बेचना (शकटकर्म) ४. विभिन्न प्रकार के वाहन - (रिक्शा, मोटार, टेक्सी आदि) किराये पर देना (भाटकर्म) ५. खान तथा तालाब आदि भूमि खुदवाने का व्यवसाय करना । (स्फोट कर्म). ६. हाथी दाँत आदि का व्यापार (दन्त वाणिज्य) ७. लाख आदि का व्यापार । (लाक्षा वाणिज्य) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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