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________________ २७८ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ६ : सूत्र १५-१६ . (३) दूसरों को उद्विग्न करना, उनके आराम में बाधा पहुंचाना, नीच जनों का संग करना तथा ऐसे ही अन्य कार्य अरति-मोहनीय कर्मबंध के कारण (४) स्वयं शोक संतप्त रहना, अन्यों को शोक उपजाना आदि कार्यों से शोक-मोहनीय कर्म का बंध होता है । (५) स्वयं भयभीत रहना तथा दूसरों को भयभीत करने से भय मोहनीय का बंध होता है । भय के प्रमुख हेतु हैं - (१) स्वयं की अथवा अन्य की शक्तिहीनता, (२) भयजनक बात सुनना-सुनाना, (३) भयभीत करने वाले भयानक दृश्य देखना-दिखाना । इहलोक आदि भयों का बार-बार स्मरण करके स्वयं अपने को भयभीत रखना तथा दूसरों को स्मरण कराके उनके मन में भय उत्पन्न करना । (६) जुगुप्सा मोहनीय के बंध का कारण धर्म एवं धार्मिक व्यक्तियों के प्रति घृणा उत्पन्न करने का प्रयास करना है । (७) स्त्रीवेद के बंध का प्रमुख कारण कपटाचरण तथा परछिद्रान्वेषण इसके अतिरिक्त स्त्रीवेद के बंध का कारण स्त्रियों के प्रति काम भावना उत्तेजित करने वाली बाते कहना, मन में ऐसे कुत्सित विचार विचार । इसी प्रकार (८) पुरूषवेद का बंध पुरुषों की वासना भडकाने तथा (९) नपुंसक वेद का बंध स्त्री एवं पुरुष दोनों की वासना भडकाने - उत्तेजित करने वाले मानसिक-वाचसिक और शारीरिक क्रिया-कलापों से होता है - आगम वचन - चउहिं ठाणेहिं जीवा णेरतियत्ताए कम्मं पकरेंति, तं जहामहारम्भताते महापरिग्गहयाते पंचिंदियवहेणं कुणिमाहारेणं । - स्थानांग, स्थान ४, उ. ४, सू. ३७३ (जीव चार प्रकार से नरक आयु का बंध करते हैं - (१) महाआरंभ करने से, (२) महापरिग्रह करने से (३) पंचेन्द्रिय जीवों का वध करने से और (४) मांस खाने से ।) नरकायुबंध के आस्रवद्वार (बंधहेतु) - बह्रारंभपरिग्रहत्वं च नरकास्यायुषः । १६ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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