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________________ आस तत्त्व विचारणा २६३ (४) दृष्टिविपर्यास - भ्रमवश निरपराधी को अपराधी समझकर मार देना अथवा मित्र को शत्रु समझकर मार देना ।। (५) हिंसाप्रत्ययिकक्रिया (दण्ड)- हिंसा के भय से हिंसा करना। जैसे-यह सर्प मुझे डस न ले इस आशंका से सर्प को मार देना ।। (६) मृषाप्रत्ययिक - अपने और दूसरों के लिए झूठ बोलना । (७) अदत्तादानप्रययिक - अपने अथवा दूसरों के लिए चोरी करना (८) अध्यात्मप्रत्ययिक - मन में होने वाली शोकादि क्रिया । (९) मानप्रत्ययिक - आठ मदों के वशीभूत होकर अन्य व्यक्तियों की निंदा, अपमान करना, उन्हें अपने से हीन समझना । (१०) मायाप्रत्ययिक - दूसरों को ठगना, अपने दोषों को छिपाना और अन्य के दोषों को प्रकट करना । कपटपूर्ण व्यवहार करना । (११) मित्रप्रत्ययिक - अपने मित्रों, आश्रित जनों, परिवारी और स्वजनों को भी छोटे अपराध के लिए कठोर दण्ड देना । (१२) लोभप्रत्ययिक - भोगोपभोग सामग्री, स्त्री-पुत्र-धन आदि परिग्रह की रक्षा के लिए, संचित रखने के लिए कह देना कि मेरे पास क्या है, अमुक के पास अधिक धन है,, सुन्दर स्त्री है, युवा पुत्री है आदि। यद्यपि यह कथन सत्य भी हो सकता है किन्तु लोभ के वशीभूत बोला गया है अतः पाप है। (१३) ईर्यापथिक - उक्त बारह क्रियाओं का त्याग करके शुद्ध संयम का पालन करते हुए गमनागमन आदि सभी क्रियाएँ करना । उत्तराध्ययन और सूत्रकृतांग में बतलाई गई इन तेरह क्रिया (क्रियास्थान अथवा दण्डस्थान) का अन्तर्भाव प्रस्तुत सूत्र में बताई गई पच्चीस क्रियाओं में सरलता से हो जाता है । १ इस प्रकार सूत्रोक्त सांपरायिक आस्त्रव के कुल भेद (अव्रत ५, कषाय ४, इन्द्रिय ५ और क्रिया २५(५+४+५+२५) ३९ हैं । क्रियाओं के अर्थ-परिभाषा तथा क्रम में आगमों की तुलना में तत्त्वार्थसूत्र स्वोपज्ञ भाष्य एवं तत्त्वार्थवार्तिक में अन्तर है । इस अन्तर का मुख्य कारण गुरु परम्परागत धारणा एवं देश-काल की परिस्थिति हो सकता है । यह सम्पूर्ण चर्चा बहुत विस्तृत है अतः यहाँ मूल तत्त्वार्थ भाष्य के अनुसार ही अर्थ व क्रम रखा गया है । तुलना के लिए संलग्न तालिका देखें -सम्पादक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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