SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 265
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अजीव तत्त्व वर्णन २४१ अन्त्य का अभिप्राय हैं-सबसे स्थूल स्कन्ध । ऐसा स्कन्ध संपूर्ण लोकव्यापी महास्कन्ध होता है । आपेक्षिक स्थूलता के अनेक (असंख्यात) भेद हैं; जैसे-आँवले की अपेक्षा आम स्थूल है, आम की अपेक्षा खरबूजा आदि । सूक्ष्म तथा स्थूल के ६भेद भी बताये गये हैं - १. स्थूल-स्थूल २. स्थूल ३. स्थूल-सूक्ष्म, ४. सूक्ष्म-स्थूल, ५. सूक्ष्म, ६. सूक्ष्म-सूक्ष्म. । (५) संस्थान आकृति को कहा जाता है । इसके प्रमुख भेद दो है - १. आत्म-परिग्रह और २. अनात्म-परिग्रह. आत्म-परिग्रह जीवों के शरीर के आकार को कहा जाता है । हुण्डक आदि संस्थान इसके उदाहरण हैं । अनात्म-परिग्रह के त्रिकोन, चौकोन, गोल, वर्ग, शंकु, आदि असंख्यात भेद हैं । (६) भेद का अर्थ विश्लेषण अथवा पृथकीकरण है । इसके प्रमुख रूप से पांच भेद हैं - (क) औत्कारिक - लकड़ी आदि को चीरने तथा आघात से होने वाला पृथकी करण औत्कारिक है | (ख) चौणिक - चूर्ण हो जाना - जैसे गेहूँ आदि को पीसने से होने वाला पृथकीकरण । (ग) खण्ड - टुकड़े-टुकड़े होना-जैसे मिट्टी आदि को फोड़ने से होने वाला पृथकीकरण । (घ) प्रतर - मेघ पटल की भांति बिखर जाना । परतें निकलनाजैसे अभ्रक आदि । (ङ) अणुचटन - जैसे संतरा, आम आदि फल को छीलकर उसके फल तथा छिलके को अलग-अलग कर देना । (७) तम - तम का अर्थ अन्धकार है । वे श्याम वर्ण वाले पुद्गलपरिणाम जो दृष्टि को प्रतिबन्धित करते हैं, उन्हें तम कहा जाता है । (८) छाया - किसी भी वस्तु में अन्य वस्तु की आकृति अंकित हो जाना छाया है । यह दो प्रकार की. है (१) प्रकाश आवरणरूप और २) प्रतिबिम्ब रूप । (९) उष्ण प्रकाश आतप कहलाता है और (१०) शीतल प्रकाश को उद्योत कहा गया है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy