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________________ अजीव तत्त्व वर्णन २२५ आगम वचन - चत्तारि पएसग्गेण तुल्ला असंखेज्जा पण्णत्ता, तं जहाधम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, लोगागासे, एगजीवे - स्थानांग, स्थान, ४ उद्देशक ३, सूत्र ३३४ - (प्रदेशों की संख्या की अपेक्षा से चार के बराबर-बराबर असंख्यात प्रदेश होते हैं, यथा-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, लोकाकाश और एक जीव के ।) आगासत्थिकाए पएसट्ठायए अणंतगुणे । - प्रज्ञापना, पद ३, सू ४१ (प्रदेशों की अपेक्षा से आकाशास्तिकाय अनन्तुगणा है अर्थात् आकाश द्रव्य के अनन्त प्रदेश होते हैं ।) रूवी अजीवदव्वाणं भंते ! कइविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा. खंधा, खंधदेसा, खंधप्पएसा, परमाणुपोग्गला.... अणंता परमाणुपुग्गला, 'अणंता दुपएसिया खंधा जाव अणंता दसपएसिया खंधा, अणंता संखेज्जपएसिया खंधा, अणंता असंखिज्जपएसिया खंधा, अणंता अणंतपएसिया खंधा - प्रज्ञापना, पद ५ (भगवन ! रूपी अजीव द्रव्य कितने प्रकार के होते है ? गौतम ! चार प्रकार के होते हैं, यथा - स्कन्ध, स्कन्धदेश, स्कन्धप्रदेश परमाणुपुद्गल । परमाणु .पुद्गल अनन्त होते हैं । दो प्रदेश वाले स्कन्धों से लगाकर देश प्रदेश वाले स्कन्ध तक सब अनन्त होते हैं । संख्यात प्रदेश वाले स्कन्ध अनन्त होते हैं, असंख्यात प्रदेश वाले स्कन्ध भी अनन्त होते है और अनन्त प्रदेश वाले स्कन्ध भी अनन्त होते हैं । द्रव्यों मे प्रदेशों की संख्या - . असंख्येया : प्रदेशा धर्माधर्मयो ।७। जीवस्य ।८। आकाशस्यानन्ता : ।९। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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