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________________ ( १६ ) . अध्याय २: जीव विचारणा ७८-१३१ जीवों के भाव ७८, औपशमिक भाव के भेद ८०, क्षायिक भावों के भेद ८२, क्षायोपशमिक भावों के भेद ८३, औदयिक भावों के भेद ८५, पारिणामिक भावों के भेद ८५, पारिणामिक भावों के भेद ८७, भाव (सान्निपातिक भावों) की तालिका ८८-८९-९०,जीव का लक्षण-उपयोग ९१, जीवों के मूल दो भेद ९३, संसारी जीवों के भेद ९४, त्रस और स्थावर जीवों के भेद ९६, इन्द्रियों की संख्या ६८, इन्द्रियों के भेद ९९, विषय १०१, मन का विषय १०२, इन्द्रियों के स्वामी १०३, संज्ञी -असंज्ञी विचारणा. १०५, विग्रह गति सम्बन्धी विचारणा १०८, जन्म के प्रकार ११०, योनियों के प्रकार १११, तालिका ८४ लाख योनि और १९७११ लाख कुल क्रोड़ी की ११२, गर्भजन्म के प्रकार ११३, उपपाद जन्म वाले जीव ११४, संम्मूर्च्छन जीव, १४, शरीर के प्रकार ११५, शरीरों की विशेषताएँ ११६, तैजस और कार्मण शरीर का आत्मा के साथ सम्बन्ध ११९, कार्मण शरीर की निरुपभोगिता १२१, औदारिक शरीर किनको १२१, वैक्रिय शरीर की उपलब्धि १२३, तेजस् शरीर और तेजोलेश्या १२४, आहारक शरीर की विशेषताएँ १२५, वैद-विचारणा १२६, सोपक्रमनिरूपक्रम आयु विचारणा १२८ । अध्याय ३: अधोलोक तथा मध्यलोक नरकों के नाम १३३, नरकों का विशेष वर्णन १३४, अधोलोक का चित्र १३५, नरकों की अवस्थिति १३७, लोक संस्थान आकृति (चित्र) १४०, लोक का विस्तार १४१, नारकियों के दु:ख, परिणाम आदि १४३, नारकी जीवों की उत्कृष्ट आयु १४६, नारकी जीव (तालिका) १४९, तिर्यक् (मध्य) लोक के द्वीप समुद्र १५०, जंबूद्वीप १५२, मनुष्य क्षेत्र १५४, मनुष्यों के भेद १५७, मनुष्य एवं तिर्यंचो की आयु १५७।। १३२-१५९ अध्याय ४: ऊर्ध्वलोक-देवनिकाय १६०-२१८ देवों के भेद १६०, ज्योतिषी देवों की लेश्या १६१, चारों प्रकार के देवों और उपभेदों की तालिका १६२, देवों की श्रेणियाँ १६४, व्यंतर और ज्योतिष्क इन्द्र १६६, चौंसठ इन्द १६७, भवनवासी व्यंतर देवों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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