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ऊर्ध्वलोक-देवनिकाय १७५ व्यंतरों की विशेषताएँ और उत्तर भेद - मूल सूत्र में व्यंतर देवों के आठ भेद बताये गये हैं; किन्तु स्वयं सूत्रकार ने भाष्य में इनके उपभेद भी गिनाये हैं । इनकी विशेषताएँ और उपभेद निम्न है -
१. किन्नर - यह देव प्रियंगुमणि के समान श्याम वर्णी होते है। इनका स्वभाव सौम्य और रूप आल्हादकारी होता है । इनका मुख बहुत मनोरम होता है। इनका चिन्ह अशोक वृक्ष की ध्वजा है ।
इनके दस उत्तरभेद हैं - १. किन्नर, २. किंपुरुष, ३. किम्पुरूषोत्तम; ४. किन्नरोत्तम ५ . हृदयंगम, ६. रुपशाली, ७. अनिन्दित, ८. मनोरम, ९. रतिप्रिय और १०. रतिश्रेष्ठ ।।
२. किम्पुरुष - इनके उरु, जंघा और बाहु अधिक शोभाशाली होते हैं । मुख अधिक भास्वर होता है । ये अनेक प्रकार की चित्र-विचित्र मालाओं से सुशोभित और इत्र आदि से गंधगुटिका बने रहते हैं । इनका चिन्ह चम्पक वृक्ष की ध्वजा है ।
. इनके दस उत्तरभेद हैं - १. पुरुष, २. सत्पुरुष, ३. महापुरष, ४. पुरुषवृषभ, ५. पुरुषोत्तम, ६. अतिपुरुष, ७. मरुदेव, ८. मरुत, ९. मेरुप्रभ और १०. यशस्वान ।
३. महोरग - इनका वर्ण श्याम किन्तु सौम्य है । इनका वेग महान होता है। स्कन्ध तथा ग्रीवा का भाग विशाल और स्थूल होता है । विभिन्न प्रकार के आभरण धारण करते हैं । इनका चिन्ह नागवृक्ष की ध्वजा है ।
___ इनके दस उपभेद हैं - १. भुजग, २. भोगशाली, ३. महाकाय, ४. अतिकाय, ५. स्कन्ध शाली, ६. मनोरम, ७. महावेग, ८. महेष्वक्ष, ९. मेरुकान्त और. १०. भास्वान ।
४. गंधर्व - इनका वर्ण लाल होता है। रुप प्रिय, सुन्दर मुख और स्वर मनोज्ञ होता है । इनका चिन्ह तुम्बुरु वृक्ष की ध्वजा है । ..
इनके १२ उपभेद है - १. हाहा, २. हूहू, ३. तुम्बुरु, ४. नारद, ५. ऋषिवादिक, ६. भूतवादिक, ७. कादम्ब, ९. महाकादम्ब, ९. रैवत, १०. विश्वावसु, ११. गीतरति और १२. गीतयशा: ।
५. यक्ष - ये निर्मल श्याम वर्ण वाले, गम्भीर और तुन्दिल (लम्बे उदर वाले) होते हैं । इनका रूप मनोज्ञ और प्रिय होता है । इनके हाथ
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