SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 191
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७. महोरगों के - १ अतिकाय २ महाकाय ९. गंधर्वो के - १ गीतरति और गीतयश इनके अतिरिक्त दो देवनिकाय शेष हैं- ज्योतिष्क और वैमानिक (कल्पोपपन्न) । ज्योतिष्क देवों के इन्द्र तो सूर्य-चन्द्र है । किन्तु सूर्य और चन्द्र असंख्यात हैं, क्योंकि तिर्यक् लोक में द्वीप - समुद्र भी असंख्यात हैं। अतः ज्योतिष्क इन्द्र भी असंख्यात ही हैं । वैमानिक देवों में कल्पोपपन्न देवों तक ही इन्द्र होते हैं । बारह देवलोक हैं । इनके नाम पहले आ चुके हैं । इन स्वर्गों के इन्हीं नाम वाले इन्द्र है जिनकी संख्या दस हैं । ऊर्ध्व लोक - देवनिकाय १६७ पहले के आठ स्वर्गों तक का उन्ही स्वर्गों के नाम वाला एक-एक इन्द्र हैं । किन्तु आनत और प्राणत इन दो स्वगीं का प्राणत नाम का एक ही इन्द्र है और इसी प्रकार आरण और अच्युत दोनों देवलोकों में एक ही इन्द्र है जिसका नाम अच्युत हैं । चौंसठ इन्द्र देवों की चारों निकायों (भवनवासी, वाणव्यंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक ) के कुल ६४ इन्द्र होते हैं । इनका वर्णन इस प्रकार है - २० इन्द्र भवनवासीदेवों के (१० दक्षिणदिशा के ३२ इन्द्र वाणव्यंतरों के ( १६ दक्षिण दिशा के, २ इन्द्र ज्योतिष्क देवों के ( चन्द्र और सूर्य ) १० इन्द्र वैमानिक देवों के Jain Education International - तीर्थंकरो के जन्म आदि कल्याणकों पर इन इन्द्रों के आसन चलायमान होते हैं । उस समय यह अपने अविधज्ञान का उपयोग लगाते हैं । उस ज्ञान से वस्तुस्थिति जानकर सभास्थित सुघोषा घण्टा बजवाते हैं । घण्टे की ध्वनि सब विमानों में पहुंच जाती है । इस ध्वनि को सुनकर सभी विमानवासी देवगण शीघ्र ही आकर सभा में उपस्थित हो जाते हैं और इन्द्र की आज्ञा पाकर अपने-अपने विमानों मे बैठकर तथा इन्द्र सपरिवार आकर जहाँ तीर्थंकर का जन्म आदि होता है, उस स्थल पर आ जाते हैं और उत्सव मनाते हैं । यह देवों का जीताचार ( पारम्परिक आचरण) हैं । For Personal & Private Use Only १० उत्तर दिशा के) १६ उत्तर दिशा के www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy