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________________ अधालोक तथा मध्यलोक १४७ सागर हैं । छठे नरक की जघन्य आयु सत्रह सागर और उत्कृष्ट आयु बाईस सागर है । सातवें नरक की जघन्य आयु बाईस सागर और उत्कृष्ट आयु तेतीस सागर है । नारक जीवों की उत्कृष्ट आयु - तेष्वेकत्रिसप्तदशसप्तदशद्वाविंशतित्रयस्त्रिशत् सागरोपमा : सत्वानां परा स्थितिः । ६। उन नारक जीवों की (भूमियो के क्रम के अनुसार) एक, तीन, सात, दश, सत्रह, बाईस और तेतीस सागर की उत्कृष्ट आयु है । विशेष - यहाँ उद्धृत आगम गाथा में नारक जीवों की उत्कृष्ट और जघन्य दोनों ही प्रकार की आयु का वर्णन किया गया है, जबकि प्रस्तुत सूत्र में सिर्फ उत्कृष्ट आयु ही बताई गई है । इनकी जघन्य आयु का वर्णन अध्याय ४ के सूत्र ४३-४४ में किया गया है ।। विवेचन - प्रथम पृथ्वी रत्नप्रभा के नारकियों की उत्कृष्ट आयु एक सागर, दूसरी नरक के नारकियों की तीन सागर, तीसरी नरक के नारिकयों की सात सागर, चौथी नरक के नारकियों की दस सागर, पाँचवीं नरक के नारकियों की सत्रह सागर, छठी नरक के नारकियों की बाईस सागर और सातवीं नरक के नारकियों की तेतीस सागर हैं । यह इन सभी नारक जीवों की उत्कृष्ट आयु स्थिति है । विशेष - यहां अधोलोक का वर्णन पूरा हो जाता है। साथ ही यह भी स्पष्ट हो जाता है कि नारकी जीवों को दुःख ही दुःख हैं । उनकी आयु भी बहुत लम्बी है, अतः लम्बे समय तक उन्हे दुःख भोगने पड़ते हैं, क्योकि उनकी आयु बीच में नही टूट सकती, पूरी ही भोगनी पड़ती है । अतः सहज ही यह जिज्ञासा होती है कि किस-किस गति के कौनकौन से जीव किस-किस नरक में उत्पन्न होते हैं और यह अपनी घोर कष्टपूर्ण आयु पूरी करके किस-किस गति में उत्पन्न हो सकते हैं । इस जिज्ञासा का सामान्य समाधान यह है कि देवगति से आयु पूर्ण करके कोई भी जीव नरक गति में उत्पन्न नहीं हो सकता, साथ ही नारकी जीव भी नरक आयु पूर्ण करके पुनः नरक में उत्पन्न नहीं होता । इसके साथ यह भी नियम है कि नारकी जीव आयु पूर्ण करके देवगति में उत्पन्न नहीं होता। इसका सीधा सा फलितार्थ यह है नरक में आने वाले/उत्पन्न होने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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