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जीव-विचारणा १११ (३) उपपात जन्म - जब जीव अपने उत्पत्ति स्थान की सर्व दिशाओं में विद्यमान वैक्रिय पुद्गलों को ग्रहण करके उनसे अपने शरीर का निर्माण करता है, वह 'उपपात जन्म' कहलाता है ।
ऐसा जन्म देव और नारकियों का ही होता है । आगम वचन -
गोयमा ! तिविहा जोणी पण्णत्ता, तं जहा - सीया जोणी, उसिणा जोणी, सीओसिणा जोणी । तिविहा जोणी पण्णत्ता, तं जहासचित्ता जोणी, अचित्ता जोणी, मीसिया जोणी । तिविहा जोणी पण्णत्ता, तं जहा - संवुडा जोणी, वियडा जोणी, संवुड वियडा जोणी ।
प्रज्ञापना, योनि पद ९ (गौतम ! योनियाँ तीन प्रकार की कही गई हैं; यथा - (१) शीतयोनि (२) उष्ण योनि और (३) शीतोष्ण योनि ।
योनियाँ तीन प्रकार की कही गई हैं; यथा- (१) सचित्त योनि (२) अचित्त योनि और (३) मिश्र (सचित्ताचित्त) योनि ।
___ योनियाँ तीन प्रकार की कही गई हैं; यथा - (१) संवृत योनि (२) विवृत. योनि और (३) संवृत विवृत योनि ।) योनियों के प्रकार -
सचित्तशीतसंवृताः सेतरा मिश्राश्चैकशस्तद्योनयः ।३३।
योनियाँ (१) सचित्त, (२) शीत, (३) संवृत तथा इनके विपरीत, (४) अचित्त, (५) उष्ण, (६) विवृत तथा इनकी मिश्रित, (७) सचित्त, (८) शीतोष्ण और (९) संवृत्तविवृत इस तरह नौ प्रकार की हैं ।)
विवेचन - योनि का अभिप्राय है जीव के जन्म ग्रहण करने का स्थान योनि दो प्रकार की हैं -
(१) आकारयोनि और (२) गुणयोनि ।। गुणयोनि के उपरोक्त नौ भेद हैं ।
आकार योनी तीन प्रकार की होती है - (१) शंखावर्ता, (२) कूर्मोन्नता और (३) वंशपत्रा । इनमें से शंखावर्ता योनि में गर्भ नहीं ठहरता, शेष दो प्रकार की योनियों में गर्भ धारण की योग्यता होती है ।
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