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________________ ७६ तत्त्वार्थ सूत्र (३) स्यादस्ति-नास्ति किसी अपेक्षा से वस्तु है और किसी अपेक्षा से नहीं भी है । (४) स्यादवक्तव्य- किसी अपेक्षा से वस्तु का कथन नहीं किया जा सकता । सत्य यह है कि वस्तु का कितना भी वर्णन किया जाय, किन्तु वह रहेगा आंशिक ही, पूर्ण वर्णन नहीं किया जा सकता । जैसे किसी महान आत्मा के गुणों का वर्णन कितनी भी विशदता से किया जाय फिर भी कुछ गुण तो अवर्णित रह ही जायेंगे । यही अवक्तव्यता है । (५) स्यादस्ति अवक्तव्य - वस्तु है किन्तु अवक्तव्य है । ... (६) स्यान्नास्ति अवक्तव्य - वस्तु नहीं है किन्तु अवक्तव्य भी है (७) स्यादस्तिनास्ति अवक्तव्य - वस्तु है भी, नहीं भी है और अवक्तव्य है । इसको एक उदाहरण से समझिये - पढ़ाई में कमजोर किसी छात्र की सफलता के विषय में उसके शिक्षक से जानकारी प्राप्त की जाय तो सात प्रकार की जिज्ञासाएँ हो सकती हैं और उनके सात प्रकार के ही उत्तर संभव है । वह शिक्षक यही उत्तर देगा । (१) वह विद्यार्थी परीक्षा में उत्तीर्ण हो जायेगा (स्यादस्ति) (२) उत्तीर्ण नहीं होगा (स्यान्नास्ति) (३) पहले से तो उसकी शिक्षा में सुधार है, पर इतना नहीं कि सफलता का विश्वास किया जा सके । (स्यादिस्ति-नास्ति) (४) सफलता के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता । (स्यादवक्तव्य) (५) सुधार तो है (अस्ति) फिर भी कुछ कह नहीं सकते (अवक्तव्य) (स्यादस्ति-अवक्तव्य) (६) अभी तो सुधार नहीं (नास्ति) पर भविष्य के बारे में कुछ कह नहीं सकते (अवक्तव्य) (स्यान्नास्ति अवक्तव्य) (७) सुधार तो है (अस्ति) परन्तु विशेष सुधार नहीं है (नास्ति) फिर भी परीक्षा में सफलता के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता (अवक्तव्य) (स्यादस्ति-नास्ति-अवक्तव्य)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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