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जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
इसके अतिरिक्त, डॉ. नेमीचंदजी जैन की दृष्टि में आधुनिक युग में निम्न पदार्थ भी अभक्ष्य की कोटि में आते हैं, क्योंकि इन पदार्थों का निर्माण एवं सेवन स्वास्थ्य, सभ्यता, संस्कृति और धर्म के लिए हानिकारक है, नीचे निर्दिष्ट किए जा रहे इन पदार्थों का प्रचलन वर्तमान में बढ़ता जा रहा है, इनके नाम इस प्रकार हैं
1. आइस्क्रीम
8. कार्टिजोन
15.मास्टिकेवल्स
..
७. सिरेमिक्स क्राकरी
2. इन्सुलिन 3. एड्रीनेलिन
16.एंटीकेकिंग एजेन्ट 17.एस्पिक
10. ग्लिसरीन
4. एंजाइम
11. चीज
18.केरब गोंद
5. एमीलेस
6. एंबरग्रीस
12. जिलेटीन
13. टूथपेस्ट ___14. फूटेला
19. कैल्शियम क्लोराईड 20.. कैल्शियम फॉस्फेट
21. कोलेस्टेरिन ... 22. टेस्टोस्टेरोन
7.
मस्क
इस प्रकार, हम देखते हैं कि जैन–परम्परा में भक्ष्याभक्ष्य के संदर्भ में गहराई से विचार किया गया है। वस्तुतः, क्या खाएं, कब खाएं और कितना खाएं इसका विवेक आवश्यक है। चिकित्सकों का ऐसा मानना है कि अधिकांश बीमारियों का जन्म आहार का विवेक नहीं रखने से ही होता है। गीता में कहा गया है -अति आहार करने वाला योग-साधना नहीं कर पाता है, किन्तु केवल मात्रा का प्रश्न ही महत्त्वपूर्ण नहीं है। उसके बारे में भक्ष्याभक्ष्य का विचार भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। आहार-सम्बन्धी भक्ष्याभक्ष्य के विस्तृत विवेचन का सार इतना ही है कि जिस आहार में जीवों की उत्पत्ति हो गई हो, या तत्काल होने की संभावना हो, वैसे आहार का त्याग करना चाहिए। आहार-संज्ञा के विवेचन में आहार के सम्बन्ध में मात्रा और भक्ष्याभक्ष्य का विचार आवश्यक है। यह विवेकपूर्वक निर्णय लेना होगा कि
117 क्या न खाएं, क्या न पहिने, क्या काम में न लें, डॉ. नेमीचंद जैन
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