________________
जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
1. नाम या पहचान के अर्थ में Noun} 2. ज्ञानवृत्ति या विवेक के अर्थ में Knowledge & Reason} 3. इच्छा के अर्थ में Desire}
सर्वार्थसिद्धि ग्रंथ में 'संज्ञा' का अर्थ नाम अर्थात् पहचान है। 'संज्ञा नामेत्युच्यते' –व्यक्ति, वस्तु, स्थान एवं भाव को जो नाम दिया जाता है, अर्थात् जिस नाम से उन्हें पहचाना जाता है। व्याकरण-शास्त्र की अपेक्षा से नाम ही संज्ञा कहलाते हैं। यद्यपि संज्ञा (नाम) के कारण ही व्यक्ति, वस्तु एवं घटना की अपनी पहचान होती है और उसी पहचान (संज्ञा) के कारण ही वह जाना जाता है, किन्तु प्रस्तुत शोधकार्य के प्रसंग में संज्ञा शब्द इस अर्थ में गृहीत नहीं है।
यदि संज्ञा की व्युत्पत्ति सम् + ज्ञान से मानें, तो वह विचार-विमर्श की प्रवृत्ति के रूप में सिद्ध होता है। तत्त्वार्थसूत्र में मतिज्ञान के पर्यायवाची शब्दों का उल्लेख करते हुए, उसमें संज्ञा को मतिज्ञान का पर्यायवाची माना गया है। मनुष्य में ज्ञानावरणीय-कर्म के क्षयोपशम से जो ज्ञान एवं विवेक की शक्ति प्रकट होती है, जैनदर्शन में उसे भी संज्ञा कहा गया है। इसी आधार पर, हित की प्राप्ति और अहित का त्याग करने की क्षमता जिस जीव में होती है, उसे संज्ञी कहा जाता है। गोम्मटसार में नोइन्द्रियावरण-कर्म अर्थात् मनोशक्ति के आवरण करने वाले कर्म के क्षयोपशम से उत्पन्न हुए विवेक-सामर्थ्य या विमर्श की क्षमता को भी संज्ञा कहा गया है। विमर्श-शक्तिरूपी मन के अभाव में अन्य इन्द्रियों के ज्ञान से युक्त जीव को भी असंज्ञी कहा जाता है। तत्त्वार्थसूत्र की राजवार्तिक नामक टीका में कहा गया है- "ननु च संज्ञिनः इत्यनेनैव गतार्थत्वात्समनस्का इति विशेषणमनर्थकम् ।" इस सूत्र में, 'संज्ञिनः' - इतना पद देने से ही काम चल जाता है, अतः 'समनस्काः '- यह विशेषण देना निष्फल है, क्योंकि हित की प्राप्ति और अहित के त्याग की परीक्षा करने में मन का व्यापार होता है, यही संज्ञा है', यह कहना उचित नहीं है, संज्ञा शब्द के अर्थ में व्यभिचार पाया जाता है। संज्ञा का एक अर्थ 'नाम' (Noun) भी है। यदि नाम वाले जीव संज्ञी माने जाएं, तो सभी जीवों को संज्ञी होने का प्रसंग प्राप्त हो जाएगा। संज्ञा का अर्थ यदि ज्ञान मान लिया
6 णो इंदिय आवरण रूवोवसमं तज्जवोहणं सण्णा - गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा-660 1 “हिताहित प्राप्तिपरिहारयोगुणदोष विचारणात्मिका संज्ञा" -राजवार्तिक सू.24, पृ. 136
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org