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जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
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प्रेक्षण -
मैथुन-संज्ञा को उत्तेजित करने वाले दृश्य देखना। किसी स्त्री-पुरुष की कामक्रीड़ा आदि के दृश्यों को देखने से स्वयं के संयम का नाश होता है, क्योंकि इस प्रकार के दृश्य अचेतन मन में रही सुषुप्त वासनाओं को उत्तेजित किए बिना नही रहते हैं। सिनेमा, टीवी, कामुक पोस्टर और पर्दे पर दिखाई देने वाले कामुक दृश्यों को बार-बार देखने से नैतिक-चरित्र का पतन हुए बिना नहीं रहता है, अतः संयमी आत्मा को इस प्रकार के कामुक दृश्यों के दर्शन से सदा दूर रहना चाहिए, क्योंकि इस प्रकार के दृश्य दृष्टा के दिल में उत्सुकता पैदा करते हैं और फिर धीरे-धीरे व्यक्ति उस प्रकार की दुष्प्रवृत्ति करने के लिए तैयार हो जाता
है।
गुह्यभाषण -
एकान्त में मैथुन-क्रीड़ा सम्बन्धी गुप्त बात करना, एकान्त में मिलने के लिए स्त्रियों को संकेत करना आदि ।
संकल्प -
किसी स्त्री के साथ शारीरिक संबंध बनाने का निश्चय करना संकल्प कहलाता है।
अध्यवसाय -
संकल्प के अनुसार चेष्टा करने को अध्यवसाय कहते हैं। क्रिया-निष्पत्ति
स्त्री के साथ शारीरिक संबंध को क्रिया-निष्पत्ति कहते हैं।
ये मैथुन के प्रकार कहे गए हैं। जो साधक ब्रह्मचर्य एवं संयम के महत्त्व को समझते हैं, उनका जीवन उन्नति के शिखर पर पहुंच जाता है। ब्रह्मचर्य का अपूर्व तेज उनके जीवन के कण-कण में व्याप्त हो जाता है। ब्रह्मचारी साधक को आठ प्रकार के मैथुन का त्याग करना ही चाहिए, साथ ही, मैथुन-प्रवृत्ति का भी त्याग करना चाहिए। मैथुन के उपसेवन को
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