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प्रज्ञापना सूत्र
प्रश्न - हे भगवन्! असातावेदनीय कर्म कितने प्रकार का कहा गया है?
उत्तर - हे गौतम! असातावेदनीयकर्म आठ प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है - अमनोज्ञ शब्द यावत् कायदुःखता।
विवेचन - वेदनीय कर्म के दो भेद हैं - साता वेदनीय और असाता वेदनीय। सुख का अनुभव कराने वाला कर्म सातावेदनीय कहलाता है और दुःख का अनुभव कराने वाला कर्म असातावेदनीय कहलाता है। साता वेदनीय के आठ भेद इस प्रकार हैं - १. मनोज्ञ शब्द २. मनोज्ञ रूप ३. मनोज्ञ गंध ४. मनोज्ञ रस ५. मनोज्ञ स्पर्श ६. मनःसुखता ७. वाक् सुखता और ८. काय सुखता। इसी प्रकार असाता वेदनीय के भी अमनोज्ञ शब्द आदि आठ भेद हैं। जिनका वर्णन प्रथम उद्देशक में किया जा चुका है।
मोहणिजे णं भंते! कम्मे कइविहे पण्णत्ते? गोयमा! दुविहे पण्णत्ते। तंजहा - दंसणमोहणिजे य चरित्तमोहणिजे य। दसणमोहणिजे णं भंते! कम्मे कविहे पण्णत्ते?
गोयमा! तिविहे पण्णत्ते। तंजहा - सम्मत्तवेयणिजे, मिच्छत्तवेयणिजे, सम्मामिच्छत्तवेयणिजे।
चरित्तमोहणिजे णं भंते! कम्मे कइविहे पण्णत्ते? गोयमा! दुविहे पण्णत्ते। तंजहा - कसायवेयणिजे य, णोकंसायवेयणिजे य। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! मोहनीय कर्म कितने प्रकार का कहा गया है ? ।
उत्तर - हे गौतम! मोहनीय कर्म दो प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है - १. दर्शनमोहनीय और २. चारित्र्मोहनीय।
प्रश्न - हे भगवन् ! दर्शन मोहनीय कर्म कितने प्रकार का कहा गया है ?
उत्तर - हे गौतम! दर्शन मोहनीय कर्म तीन प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है - १. सम्यक्त्व वेदनीय २. मिथ्यात्व वेदनीय और ३. सम्यग्-मिथ्यात्व वेदनीय।
प्रश्न - हे भगवन् ! चारित्र मोहनीयकर्म कितने प्रकार का कहा गया है ?
उत्तर - हे गौतम! चारित्र मोहनीय कर्म दो प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है - १. कषायवेदनीय और २. नो कषायवेदनीय।
विवेचन - जो कर्म आत्मा को मोहित करता है अर्थात् भले बुरे के विवेक से शून्य बना देता है वह मोहनीय कर्म है। मोहनीय कर्म के दो भेद हैं - १. दर्शन मोहनीय और २. चारित्र मोहनीय। दर्शन मोहनीय, दर्शन (सम्यक्त्व) की घात करता है। दर्शन मोहनीय के तीन भेद इस प्रकार हैं -
१. सम्यक्त्व वेदनीय - जो कर्म तत्त्व रुचि रूप सम्यक्त्व में बाधक तो न हो किन्तु आत्म
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