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________________ बाईसवाँ क्रियापद - क्रियाओं का अल्पबहुत्व ४३ गोयमा! सव्वत्थोवाओ मिच्छादंसणवत्तियाओ किरियाओ, अपच्चक्खाण किरियाओ विसेसाहियाओ, परिग्गहियाओ विसेसाहियाओ, आरंभियाओ किरियाओ विसेसाहियाओ, मायावत्तियाओ किरियाओ विसेसाहियाओ॥५९७॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! इन आरम्भिकी से लेकर मिथ्यादर्शनप्रत्यया तक की क्रियाओं में कौन किससे अल्प है, बहुत है, तुल्य है अथवा विशेषाधिक है? उत्तर - हे गौतम! सबसे कम मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रियाएं हैं। उनसे अप्रत्याख्यान क्रियाएं विशेषाधिक हैं। उनसे पारिग्रहिकी क्रियाएं विशेषाधिक हैं। उनसे आरम्भिकी क्रियाएं विशेषाधिक हैं और इन सबसे मायाप्रत्यया क्रियाएं विशेषाधिक है। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में क्रियाओं के अल्प-बहुत्व का कथन किया गया है जो इस प्रकार हैसबसे थोड़ी मिथ्यादर्शन प्रत्यय क्रिया है क्योंकि यह मिथ्यादृष्टि, सास्वादन सम्यग्दृष्टि और मिश्र दृष्टि जीवों को ही होती है, उससे अप्रत्याख्यान क्रिया विशेषाधिक है क्योंकि वह अविरति सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि आदि को होती है, उससे भी पारिग्रहिकी क्रिया विशेषाधिक है क्योंकि वह देशविरति वालों और पूर्व (प्रारम्भ के चार गुणस्थान) वालों को होती है, उससे भी आरंभिकी क्रिया विशेषाधिक है क्योंकि वह प्रमत्त संयत और उसे पहले के जीवों (प्रारम्भ के पांच गुणस्थान वालों) को होती है . उससे भी मायाप्रत्यया क्रिया विशेषाधिक है क्योंकि यह अप्रमत्त संयतों (सातवें से दसवें गुणस्थान वालों) को तथा प्रारम्भ के छह गुणस्थान वालों को होती है। ॥पण्णवणाए भगवईए बावीसइमं किरियापयं समत्तं॥ .. ॥प्रज्ञापना भगवती सूत्र का बाईसवाँ क्रियापद समाप्त॥ . ★★★★★ . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004096
Book TitlePragnapana Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size8 MB
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