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छत्तीसवां समुद्घात पद - योग निरोध के बाद सिद्ध होने तक की स्थिति
सिज्झइ बुज्झइ० तत्थ सिद्धो भवइ ॥
युक्त
उज्जुसेढीपडिवण्णो अफुसमाणगई एग समएणं अविग्गहेणं उड्डुं गंता सागारोवउत्ते
भावार्थ
कठिन शब्दार्थ - असंखिज्जगुण परिहीणं असंख्यातगुणहीन, णिरुंभइ - निरोध करता है, उवाएणं - उपाय से, जोगणिरोहं - योग निरोध, अजोगयं - अयोगत्व, पाउणइ प्राप्त करता है, हस्सपंचक्खरुच्चारणद्धाए - पांच हस्व अक्षरों (अ, इ, उ, ऋ, लृ) के उच्चारण में जितना समय लगे, असंखिज्जसमइयं - असंख्यात समयिक, पुव्वरइयगुणसेढियं - पूर्व रचित गुण श्रेणी को, सेलेसिमद्धाए - शैलेशी काल में, ख़वयड़ क्षय करता है, उज्जुसेढीपडिवण्णो ऋजु श्रेणी को प्राप्त हो कर, अफुसमाणगई - अस्पर्शत गति से, अविग्गहेणं - अविग्रह से, सागारोवउत्ते - साकारोपयोग
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से
होकर ।
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प्रश्न
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कर देता है ?
उत्तर - हे गौतम! वह ऐसा करने में समर्थ नहीं है। वह सर्वप्रथम संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक जघन्य योग वाले के मनोयोग से भी नीचे ( कम ) असंख्यात गुणहीन मनोयोग का पहले निरोध करता है तदनन्तर बेइन्द्रिय पर्याप्तक जघन्य योग वाले के वचन योग से भी नीचे असंख्यातगुण हीन वचन योग का निरोध करता है। तत्पश्चात् अपर्याप्तक सूक्ष्म पनकजीव जो जघन्य योग वाला हो, उससे भी कम असंख्यातगुणहीन तीसरे काययोग का निरोध करता है, वह केवली इस उपाय से सर्वप्रथम मनोयोग का निरोध करता है। मनोयोग का निरोध कर वचन योग का निरोध करता है, वचन योग निरोध के पश्चात् काययोग का निरोध करता है काययोग निरोध करके वह सर्वथा योग निरोध कर देता है। योग निरोध करके वह अयोगत्व प्राप्त कर लेता है । अयोगत्व प्राप्त करने के पश्चात् ही पांच ह्रस्व अक्षरों (अ इ उ ऋ लृ ) के उच्चारण. जितने काल में असंख्यात समय के अन्तर्मुहूर्त्त तक होने वाले शैलेशीकरण को अंगीकार करता है। पूर्वरचित गुण श्रेणियों वाले कर्म को उस शैलेशीकाल में असंख्यात कर्म स्कन्धों का क्षय कर डालता है। क्षय करके वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र इन चार कर्मों का एक साथ क्षय कर देता है। चार कर्मों का एक साथ क्षय करते ही औदारिक, तैजस और कार्मण शरीर का सदा के लिए त्याग कर देता है, त्याग करके ऋजुश्रेणी को प्राप्त होकर अस्पर्शत गति से एक समय में अविग्रह (बिना मोड़ की गति) से ऊर्ध्व गमन कर साकारोपयोग (केवलज्ञान के उपयोग) से उपयुक्त होकर वह सिद्ध, बुद्ध, मुक्त और परिनिर्वृत्त हो जाता है सर्व दुःखों का अंत कर देता है और वह वहाँ (सिद्ध शिला में पहुँच कर सिद्ध हो जाता है ।
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में केवली द्वारा योग निरोध का क्रम तथा योग निरोध करने के पश्चात् सिद्ध होने तक की स्थिति का निरूपण किया गया है।
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हे भगवन् ! वह तथारूप सयोगी सिद्ध होता है यावत् सर्व दुःखों का अन्त
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