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________________ छत्तीसवां समुद्घात पद केवलिसमुद्घात समवहत् भावितात्मा अनगार के..... =============== - =============== केवलिसमुद्घात समवहत भावितात्मा अनगार के चरम निर्जरा पुद्गल ३२९ detachuset अणगारस्स णं भंते! भावियप्पणो केवलिसमुग्धाएणं समोहयस्स जे चरिमा णिज्जरा पोग्गला सुहुमा णं ते पोग्गला पण्णत्ता समणाउसो ! सव्वलोगं पि य णं ते फुसित्ताणं चिट्ठति ? हंता गोयमा ! अणगारस्स भावियप्पणो केवलिसमुग्धाएणं समोहयस्स जे चरिमा जिरा पोग्गला सुहुमा णं ते पोग्गला पण्णत्ता समणाउसो । सव्वलोगं पियणं ते फुसित्ताणं चिट्ठति ॥ ७०८ ॥ कठिन शब्दार्थ - चरमा णिज्जरापोग्गला - केवलिसमुग्घात के चौथे समय के निर्जीर्ण पुद्गल । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! केवलि समुद्घात से समवहत भावितात्मा अनागर के जो चरम . निर्जरा पुद्गल हैं हे आयुष्मन् श्रमण ! क्या वे पुद्गल सूक्ष्म कहे गए हैं ? क्या वे समस्त लोक को स्पर्श करके रहते हैं ? उत्तर - हाँ गौतम! केवलि समुद्घात से समवहत भावितात्मा अनगार के जो चरम निर्जरा पुद्गल होते हैं हे आयुष्मन् श्रमण। वे पुद्गल सूक्ष्म कहे गये हैं तथा वे समस्त लोक को स्पर्श (व्याप्त) करके -रहते हैं। विवेचन प्रस्तुत सूत्र में केवलि समुद्घात से समवहत अनगार के चरम निर्जरा पुद्गल विषयक कथन किया गया है। वे पुद्गल ( चरम - चतुर्थ समयवर्ती निर्जरा पुद्गल) अत्यंत सूक्ष्म होते हैं और वे समग्र लोक को व्याप्त करके रहते हैं । Jain Education International छउमत्थे णं भंते! मणूसे तेसिं णिज्जरापोग्गलाणं किंचि वण्णेणं वण्णं गंधेणं गंधं रसेणं रसं फासेणं वा फासं जाणइ पासइ ? गोमा ! णो इणट्ठे समट्ठे । सेकेणणं भंते! एवं वच्चइ- 'छउमत्थे णं मणूसे तेसिं णिज्जरा पोग्गलाणं णो किंचि वण्णेणं वण्णं गंधेणं गंधं रसेणं रसं फासेणं फासं जाणइ पासइ ?' गोयमा! अयण्णं जंबूद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वब्धंतराए सव्वखुड्डाए वट्टे तेल्लापूय संठाण संठिए वट्टे रहचक्कवालसंठाण संठिए वट्टे पुक्खरकण्णिया संठाणसंठिए वट्टे पडिपुण्ण चंद संठाण संठिए एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं तिण्णि जोयणसयसहस्साइं सोलस सहस्साइं दोण्णि य सत्तावीसे जोयणसए तिण्णि य कोसे For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004096
Book TitlePragnapana Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size8 MB
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