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छत्तीसवां समुद्घात पद - वेदना समुद्घात आदि से समवहत जीवो.....
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प्रकार यावत् वैमानिक पर्यंत समझ लेना चाहिये। विशेषता यह है कि पंचेन्द्रिय तिर्यंच एक ही दिशा में पूर्वोक्त क्षेत्र को आपूर्ण एवं स्पृष्ट करते हैं।
विवेचन - तैजस समुद्घात चारों प्रकार के देवों, तिर्यंच पंचेन्द्रियों और मनुष्यों में ही होता है शेष जीवों में नहीं। अतः समुच्चय जीव, पन्द्रह दण्डक (१३ देवता के, १ मनुष्य का व १ तिर्यंच पंचेन्द्रिय) में तैजस समुद्घात वैक्रिय समुद्घात की तरह कह देना चाहिये किन्तु इतना अंतर है कि इसमें लम्बाई जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग कहना और तिर्यंच पंचेन्द्रिय में एक दिशा में कहना चाहिये। . जीवे णं भंते! आहारगसमुग्घाएणं समोहए समोहणित्ता जे पोग्गले णिच्छुभइ तेहि णं भंते! पोग्गलेहिं केवइए खेत्ते अप्फुण्णे, केवइए खेत्ते फुडे? ___ गोयमा! सरीरप्पमाणमेत्ते विक्खंभ-बाहल्लेणं, आयामेणं जहण्णेणं अंगुलस्स संखिजइभागं, उक्कोसेणं संखिज्जाइं जोयणाई एगदिसिं एवइए खेत्ते०। एगसमइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण वा विग्गहेणं एवइकालस्स अप्फुण्णे, एवइकालस्स फुडे।
ते णं भंते! पोग्गला केवइकालस्स णिच्छुब्भइ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमहत्तस्स, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तस्स॥७०६॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! आहारक समुद्घात से समवहत जीव समवहत होकर जिन पुद्गलों को अपने शरीर से बाहर निकालता है हे भगवन्! उन पुद्गलों से कितना क्षेत्र आपूर्ण और कितमा क्षेत्र स्पृष्ट होता है?
उत्तर - हे गौतम ! विष्कंभ और बाहल्य से शरीर प्रमाण मात्र तथा लम्बाई में जघन्य अंगुल का संख्यातवां भाग और उत्कृष्ट संख्यात योजन क्षेत्र एक दिशा में इतना क्षेत्र एक समय, दो समय या तीन समय की विग्रहगति से इतने काल में आपूर्ण और स्पृष्ट होता है।
प्रश्न - हे भगवन् ! आहारक समुद्घात करने वाला जीव उन पुद्गलों को किनते समय में बाहर निकालता है?
- उत्तर - हे गौतम! जघन्य अंतर्मुहूर्त में और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त में उन पद्गलों को बाहर निकालता है। .
विवेचन - आहारक समुद्घात मनुष्यों में ही हो सकता है और मनुष्यों में भी उन्हीं मुनियों को होता है जो चौदह पूर्वधारी और आहारक लब्धि के धारक हों। ऐसे मुनिराज जब आहारक समुदधात
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