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छत्तीसवां समुद्घात पद - चौबीस दण्डकों में कषाय समुद्घात
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सभी जीव अर्थात् ग्यारहवें से चौदहवें गुणस्थान तक के सभी जीव) से समवहत जीव हैं, उनसे मान कषाय से समवहत अनंतगुणा, उनसे क्रोध समुद्घात से समवहत विशेषाधिक, उनसे माया समुद्घात से समवहत जीव विशेषाधिक, उनसे लोभ समुद्घात से समवहत जीव विशेषाधिक और उनसे भी असमवहत जीव संख्यातगुणा हैं।
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में क्रोधादि समुद्घात वाले, अकषाय समुद्घात वाले और समुद्घात रहित जीवों का सामान्य रूप से अल्पबहुत्व कहा गया है जो इस प्रकार है- सबसे थोड़े अकषाय समुद्घात वाले (केवली समुद्घात वाले तथा कषाय से रहित सभी जीव अर्थात् ग्यारहवें से चौदहवें गुणस्थान तक के सभी जीव) जीव हैं। उनसे मान समुद्घात वाले जीव अनंतगुणा हैं क्योंकि अनन्त वनस्पति जीव पूर्व भव के संबंध से मान समुद्घात में वर्तते होते हैं। उनसे क्रोध समुद्घात वाले जीव विशेषाधिक हैं क्योंकि मानी की उपेक्षा क्रोधी बहुत होते हैं। उनसे माया समुद्घात वाले विशेषाधिक हैं क्योंकि क्रोधी की अपेक्षा मायावी बहुत होते हैं। उनसे लोभ समुद्घात वाले विशेषाधिक हैं क्योंकि मायावी से भी लोभी बहुत होते हैं। लोभ समुद्घात वाले से समुद्घात रहित जीव संख्यातगुणा हैं क्योंकि चारों गतियों में समुद्घात युक्त जीवों की अपेक्षा समुद्घात रहित जीव संख्यातगुणा अधिक पाये जाते हैं।
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यहाँ समुच्चय जीव और मनुष्य के वर्णन में ही अकषाय समुद्घात बताई है। अतः वीतरागी जीवों 'को ही यहां पर ग्रहण किया गया है। यदि अकषाय समुद्घात से कषाय समुद्घात के सिवाय अन्य समुद्घातों का ग्रहण होता तो अन्य दण्डकों में भी उसे बताया जाता परन्तु बताया नहीं है । -
जैसे प्रज्ञापना सूत्र के १५ वें पद के उद्देशक १ में मारणांतिक समुद्घात से मरण को ही ग्रहण किया गया है, इसी प्रकार यहाँ पर भी अकषाय समुद्घात से कषाय रहित ( वीतरागी) जीवों का ही ग्रहण हुआ है। शेष समुद्घात वाले जीवों का ग्रहण तो सबसे अन्त में आये हुए 'असमवहत' शब्द से हुआ है।
एएसि णं भंते! णेरइयाणं कोहसमुग्धाएणं माणसमुग्धाएणं मायासमुग्धाएणं लोभसमुग्धाएणं समोहयाणं असमोहयाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?
गोया ! सव्वत्थोवा णेरड्या लोभसमुग्धाएणं समोहया, माया समुग्धाएणं समोहया संखिज्जगुणा, माणसमुग्धाएणं समोहया संखिज्जगुणा, कोह समुग्धाएणं समोहया संखिज्जगुणा, असमोहया संखिज्जगुणा ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! इन क्रोध समुद्घात से, मान समुद्घात से, माया समुद्घात से और लोभ समुद्घात से समवहत और असमवहत नैरयिकों में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ?
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