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________________ छत्तीसवां समुद्घात पद - समवहत एवं असमवहत जीवों के अल्पबहुत्व CCCCCCCCC===== ३०५ विग्रहगति को प्राप्त जीवों से भी असंख्यातगुणा अनन्त निगोद जीव कषाय समुद्घात वाले सदैव होते हैं। उनसे भी वेदना समुद्घात वाले विशेषाधिक हैं क्योंकि अनन्त निगोद जीव सदैव वेदना समुद्घात वाले होते हैं। वेदना समुद्घात वालों से भी समुद्घात से रहित जीव संख्यातगुणा * हैं क्योंकि वेदना, कषाय और मरण समुद्घात वालों की अपेक्षा भी संख्यातगुणा * निगोद जीव सदैव समुद्घात रहित होते हैं। RESEARCHSPESES========= एएसि णं भंते! णेरइयाणं वेयणासमुग्धाएणं कसायसमुग्धाएणं मारणंतियसमुग्धाएणं वेडव्वियसमुग्धाएणं समोहयाणं असमोहयाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा णेरड्या मारणंतियसमुग्धाएणं समोहया, वेउब्विय समुग्धाएणं समोहया असंखिज्जगुणा, कसायसमुग्धाएणं समोहया संखिज्जगुणा, वेयणासमुग्धाएणं समोहया संखिज्जगुणा, असमोहया संखिज्जगुणा । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! इन वेदना समुद्घात से, कषाय समुद्घात से, मारणांतिक समुद्घात से एवं वैक्रिय समुद्घात से समवहत और असमवहत नैरयिकों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? उत्तर हे गौतम! सबसे थोड़े मारणांतिक समुद्घात से समवहत नैरयिक हैं उनसे वैक्रिय समुद्घात से समवहत नैरयिक असंख्यातगुणा हैं, उनसे कषाय समुद्घात से समवहत नैरयिक संख्यातगुणा हैं, उनसे वेदना समुद्घात से समवहत नैरयिक संख्यातगुणा हैं और उनसे भी असमवहत ( समुद्घात से रहित) नैरयिक संख्यातगुणा हैं । Jain Education International विवेचन प्रस्तुत सूत्र में समुद्घात सहित और समुद्घात से रहित नैरयिकों की अल्प बहुत्व का वर्णन किया गया है जो इस प्रकार है - सबसे थोड़े नैरयिक मारणांतिक समुद्घात वाले हैं क्योंकि मारणांतिक समुद्घात मरण के समय ही होता है और मरने वाले नैरयिकों की संख्या जीवित नैरयिकों की अपेक्षा अल्प होती है । मृत्यु प्राप्त करने वाले सभी नैरयिकों को सामान्य रूप से मरण समुद्घात नहीं होता किन्तु कितनेक को होता है क्योंकि 'समोहया वि मरंति, असमोहया मरंति' - समुद्वघात वाले भी मरते हैं और समुद्घात के बिना भी मरते हैं - ऐसा शास्त्र वचन है। इसलिए सबसे थोड़े मारणांतिक समुद्घात वाले नैरयिक होते हैं । * किन्हीं किन्हीं प्रतियों में 'असंख्यात गुणा' पाठ दिया है किन्तु यहाँ पर 'संख्यात गुणा' का पाठ होना ही उचित है क्योंकि तीसरे पद में (२५६ ढिगले के वर्णन में) समुद्घात वालों से असमवहत जीवों को संख्यातगुणा ही बताया है। तथा आगे आने वाले कषाय समुद्घातों की अल्पबहुत्वों से भी संख्यात गुणा पाठ होना ही उचित लगता है। For Personal & Private Use Only www.jalnelibrary.org
SR No.004096
Book TitlePragnapana Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size8 MB
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