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प्रज्ञापना सूत्र
नैरयिकों के समान समझना चाहिये। इस प्रकार आहारक समुद्घात के विषय में चौबीस दण्डकों के प्रत्येक २४४२४-५७६ आलापक होते हैं।
णेरइयाणं भंते! णेरइयत्ते केवइया केवलि समुग्घाया अतीता? . गोयमा! णत्थि।
केवइया पुरेक्खडा?
गोयमा! णत्थि, एवं जाव वेमाणियत्ते। णवरं मणूसत्ते अतीता णत्थि, पुरेक्खडा असंखिजा, एवं जाव वेमाणिया, णवरं वणस्सइकाइयाणं मणूसत्ते अतीता णत्थि, पुरेक्खडा अणंता। मणूसाणं मणूसत्ते अतीता सिय अत्थि सिय णत्थि, जइ अस्थि .. जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा उक्कोसेणं सयपुहुत्तं। . ___ केवइया पुरेक्खडा?
गोयमा! सिय संखिजा, सिय असंखिजा, एवं एए चउव्वीसं चउव्वीसा दंडगा . सव्वे पुच्छाए. भाणियव्वा जाव वेमाणियाणं वेमाणियत्ते॥६९६॥
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिकों के नैरयिक पर्याय में कितने केवलि समुद्घात अतीत काल में हुए हैं?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिकों के नैरयिक पर्याय में अतीत काल में केवलि समुद्घात नहीं हुए हैं।
प्रश्न - हे भगवन्! नैरयिकों के नैरयिक पर्याय में कितने केवलि समुद्घात अनागत काल में होंगे? .
उत्तर - हे गौतम! नैरयिकों के नैरयिक पर्याय में अनागत काल में केवलि समुद्घात नहीं होंगे। इसी प्रकार यावत् वैमानिक पर्याय तक कह देना चाहिये। विशेषता यह है कि मनुष्य पर्याय में अतीत काल में केवलि समुद्घात नहीं हुए किन्तु भविष्यकाल में असंख्यात होते हैं। इसी प्रकार यावत् वैमानिकों तक समझना चाहिये। विशेषता यह है कि वनस्पतिकायिकों के मनुष्य पर्याय में अतीत केवलि समुद्घात नहीं हुए किन्तु भविष्यकाल में अनन्त होते हैं। मनुष्यों के मनुष्य पर्याय में अतीत केवलिसमुद्घात कदाचित् होते हैं कदाचित् नहीं होते। यदि होते हैं तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट शत पृथक्त्व होते हैं।
प्रश्न - हे भगवन् ! मनुष्यों के अनागत काल में कितने केवलि समुद्घात होते हैं ? उत्तर - हे गौतम! मनुष्यों के भविष्य काल में कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात केवलि
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