________________
२८४
**kokoo
प्रज्ञापना सूत्र
उत्तर - हे गौतम! नैरयिकों के अतीत आहारक समुद्घात असंख्यात हुए हैं। प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिकों के अनागत आहारक समुद्घात कितने होते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! नैरयिकों के अनागत आहारक समुद्घात असंख्यात होते हैं। इसी प्रकार यावत् वैमानिकों तक कहना चाहिये किन्तु विशेषता यह है कि वनस्पतिकायिकों एवं मनुष्यों की वक्तव्यता में नानत्व - भिन्नता है । यथा :
-
=================================
प्रश्न - हे भगवन् ! वनस्पतिकायिक जीवों के कितने आहारक समुद्घात अतीत हुए उत्तर - हे गौतम! वनस्पतिकायिक जीवों के अतीत आहारक समुद्घात अनन्त हुए हैं। प्रश्न - हे भगवन् ! मनुष्यों के कितने आहारक समुद्घात अतीत हुए हैं ?
उत्तर
हे गौतम! मनुष्यों के अतीत आहारक समुद्घात कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात हुए हैं। इसी प्रकार उनके अनागत आहारक समुद्घात भी समझ लेने चाहिये ।
विवेचन - प्रश्न के समय सभी नैरयिक मिल कर भी असंख्यात ही होते हैं उनमें से भी कुछ असंख्यात नैरयिक ऐसे होते हैं जो पूर्व में आहारक समुद्घात कर चुके हैं उनकी अपेक्षा नैरयिकों के अतीत आहारक समुद्घात असंख्यात कहे गये हैं । इसी प्रकार भविष्य में आहारक समुद्घात वाले नैरयिक भी असंख्यात ही समझने चाहिये । वनस्पतिकायिकों और मनुष्यों को छोड़ कर शेष सभी दण्डकों में अतीत और अनागत आहारक समुद्घात असंख्यात हैं ।
बहुवचन की अपेक्षा वनस्पतिकायिक जीवों में अतीत आहारक समुद्घात अनन्त हैं क्योंकि जिन्होंने पूर्व में आहारक समुद्घात किये हैं ऐसे अनन्त चौदह पूर्वधर प्रमाद के वश में संसार वृद्धि करके वनस्पति में हैं। भविष्यकाल में अनन्त आहारक समुद्घात करने वाले हैं क्योंकि अनन्त जीव वनस्पतिकाय से निकल कर चौदह पूर्वो का ज्ञान करके आहारक समुद्घात कर भविष्य में मोक्ष जाने वाले हैं।
Jain Education International
मनुष्यों के अतीत आहारक समुद्घात कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात कहे गये हैं । इसका कारण यह है कि सम्मूच्छिम और गर्भज मनुष्य उत्कृष्ट, अंगुल प्रमाण क्षेत्र में जितने आकाश प्रदेश होते हैं उसके प्रथम वर्गमूल को तीसरे वर्गमूल से गुणा करने पर जो परिमाण आता है उतने प्रदेशों वाले खण्ड घनीकृत लोक की एक प्रदेश की श्रेणी में जितने मनुष्य होते हैं उनमें से एक कम करते हैं उतने ही हैं जो कि शेष नैरयिक आदि जीव राशि की अपेक्षा बहुत कम है उनमें भी ऐसे मनुष्य कितने हैं जिन्होंने पूर्व भव में आहारक शरीर बनाया हो वे कदाचित् विवक्षित प्रश्न के समय संख्यात होते हैं और कदाचित् असंख्यात होते हैं इसलिए ऐसा कहा गया है कि अतीत आहारक समुद्घात कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात होते हैं। मनुष्यों के भविष्य के आहारक समुद्घात भी इसी तरह कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात समझने चाहिये ।
For Personal & Private Use Only
www.jalnelibrary.org