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छत्तीसइमं समुग्घायपयं
छत्तीसवां समुद्घात पद प्रज्ञापना सूत्र के पैंतीसवें पद में गति के परिणाम विशेष रूप वेदना का प्रतिपादन किया गया है। अब इस छत्तीसवें पद में भी गति के परिणाम विशेष रूप समुद्घात का विचार किया जाता है। जिसमें समुद्घात की वक्तव्यता विषयक संग्रहणी गाथा इस प्रकार हैं -
वेयण १ कसाय २ मरणे ३ वेउव्विय ४ तेयए य ५ आहारे ६। केवलिए चेव भवे ७ जीवमणुस्साण सत्तेव॥
भावार्थ - १. वेदना २. कषाय ३. मरण ४. वैक्रिय ५. तैजस ६. आहारक और ७. केवली समुद्घात, ये सात समुद्घात जीव और मनुष्यों में होती है।
समुद्घात के भेद कइ णं भंते! समुग्घाया पण्णत्ता?
गोयमा! सत्त समुग्घाया पण्णत्ता। तंजहा - वेयणासमुग्घाए १, कसायसमुग्घाए २, मारणंतियसमुग्घाए ३, वेउव्वियसमुग्घाए ४, तेयासमुग्घाए ५, आहारगसमुग्घाए ६, केवलिसमुग्घाए ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! समुद्घात कितने प्रकार के कहे गये हैं?
उत्तर - हे गौतम! समुद्घात सात प्रकार के कहे गये हैं, वे इस प्रकार हैं - १. वेदना समुद्घात २. कषाय समुद्घात ३. मारणांतिक समुद्घात ४. वैक्रिय समुद्घात ५. तैजस समुद्घात ६. आहारक समुद्घात और ७. केवली समुद्घात।
विवेचन - वेदना आदि के साथ तन्मय होकर मूल शरीर को छोड़े बिना प्रबलता से आत्मप्रदेशों को शरीर अवगाहना से बाहर निकाल कर असाता वेदनीय आदि कर्मों का नाश करना समुद्घात कहलाता है। इसके सात भेद हैं। यथा - १. वेदनीय २. कषाय ३. मारणांतिक ४. वैक्रिय ५. तैजस ६. आहारक और ७. केवली।
१. वेदनीय (वेदना) समुद्घात - असाता वेदनीय कर्म के कारण आत्म-प्रदेशों में स्पंदन होकर कुछ आत्म-प्रदेशों का शरीरावगाहना से बाहर आ जाना वेदनीय समुद्घात है। इसके द्वारा उदय प्राप्त असाता वेदनीय कर्म का नाश होता है। साता वेदनीय कर्म की समुद्घात नहीं होती है।
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