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पैतीसवां वेदना पद - निदा-अनिदा वेदना द्वार
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पुढविकाइयाणं पुच्छा ?
गोयमा ! णो णिदायं वेयणं वेदेंति, अणिदायं वेयणं वेदेंति ।
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सेकेणणं भंते! एवं वुच्चइ - 'पुढविकाइया णो णिदायं वेयणं वेदेति, अणिदायं वेयणं वेदेंति' ?
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गोयमा ! पुढविकाइया सव्वे असण्णी, असण्णिभूयं अणिदायं वेयणं वेदेंति, से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ पुढविकाइया णो णिदायं वेयणं वेदेंति, अणिदायं वेयणं वेदेंति एवं जाव चउरिंदिया ।
पंचिंदियतिरिक्खजोणिया मणूसा वाणमंतरा जहा णेरइया ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पृथ्वीकायिक जीव निदा वेदना वेदते हैं या अनिदावेदना ? उत्तर - हे गौतम! पृथ्वीकायिक जीव निदा वेदना नहीं वेदते किन्तु अनिदा वेदना वेदते हैं। प्रश्न - हे भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि पृथ्वीकायिक जीव निदा वेदना नहीं वेदते किन्तु अनिदा वेदना वेदते हैं ?
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उत्तर - हे गौतम! सभी पृथ्वीकायिक जीव असंज्ञी और असंज्ञीभूत होते हैं इसलिए अनिदा वेदना वेदते हैं निंदा वेदना नहीं वेदते । इस कारण से हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि पृथ्वीकायिक जीव निदा वेदना नहीं वेदते किन्तु अनिदा वेदना वेदते हैं। इसी प्रकार यावत् चउरिन्द्रिय तक कहना चाहिये ।
पंचेन्द्रिय तिर्यंच, मनुष्य और वाणव्यंतर देवों की वक्तव्यता नैरयिकों के समान समझनी चाहिये । विवेचन - पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चउरिन्द्रिय के जीव सम्मूच्छिम होते हैं अतः मन रहित होने के कारण वे अनिदा वेदना ही वेदते हैं।
पंचेन्द्रिय तिर्यंच, मनुष्य और वाणव्यंतर देवों का कथन नैरयिकों की तरह. कहना चाहिये अर्थात् जैसे नैरयिकों के विषय में कहा है वैसे ही ये जीव निदा वेदना भी वेदते हैं और अनिदा वेदना भी वेदते हैं क्योंकि पंचेन्द्रिय तिर्यंच और मनुष्य दो प्रकार के होते हैं १. सम्मूच्छिम और २. गर्भज । उनमें जो सम्मूच्छिम हैं वे मन रहित होने से अनिदा वेदना वेदते हैं और जो गर्भज हैं वे मन सहित होने से निदा वेदना वेदते हैं। वाणव्यंतर देव संज्ञी से भी आकर उत्पन्न होते हैं और असंज्ञी से भी आकर उत्पन्न होते
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हैं अतः नैरयिकों की तरह वे भी निदा और अनिदा दोनों प्रकार की वेदना वेदते हैं।
जोइसियाणं पुच्छा ?
गोयमा ! णिदायं पिवेयणं वेदेंति, अणिदायं पि वेयणं वेदेंति ।
सेकेणणं भंते! एवं वुच्चइ - ' जोइसिया णिदायं पि वेयणं वेदेंति, अणिदायं पि वेणं वेदेंति ?
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