________________
पणतीसइमं वेयणापयं
पैतीसवां वेदना पद
• प्रज्ञापना सूत्र के चौतीसवें पद में वेदना के परिणाम विशेष रूप प्रवीचार का निरूपण किया गया है । इस पैतीसवें पद में गति के परिणाम विशेष वेदना का प्रतिपादन किया जाता है। जिसकी संग्रहणी गाथाएं इस प्रकार हैं
-
सीया य दव्व सरीरा साया तह वेयणा भवइ दुक्खा ।
अब्भुवगमोवक्कमिया णिदा य अणिदा य णायव्वा ॥ १ ॥
सायमसायं सव्वे सुहं च दुक्खं अदुक्खमसुहं च । माणसरहियं विगलिंदिया उ सेसा दुविहमेव ॥ २ ॥
कठिन शब्दार्थ - अब्भुवगमोवक्कमिया - आभ्युपगमिकी, औपक्रमिकी, सायमसायं- साता और असाता, माणसरहियं - मन रहित ।
भावार्थ १. शीत २. द्रव्य ३. शरीर ४. साता ५. दुःख रूप वेदना ६. आभ्युपगमिकी और औपक्रमिकी वेदना ७. निदा और अनिदा वेदना, इस प्रकार वेदना पद के सात द्वार समझने चाहिये ॥ १ ॥
साता और असातावेदना सभी जीव वेदते हैं। इसी प्रकार सुख, दुःख और अदुःख असुख वेदना भी सभी जीव वेदते हैं। विकलेन्द्रिय मानसवेदना से रहित मन रहित वेदना वेदते हैं और शेष जीव दोनों प्रकार की वेदना वेदते हैं।
-
विवेचन - पैतीसवें वेदना पद में सात द्वारों के द्वारा वेदना का निरूपण किया गया है जो इस प्रकार है - १. शीत वेदना द्वार शीत, उष्ण और शीतोष्ण के भेद से वेदना तीन प्रकार की कही गयी है । २. द्रव्य द्वार - इस दूसरे द्वार में चार प्रकार से वेदना का निरूपण किया गया है - १. द्रव्य २. क्षेत्र ३. काल और ४. भाव । ३. शरीर वेदना द्वार इस द्वार में वेदना के तीन भेद किये गये हैं १. शारीरिक २. मानसिक और ३. शारीरिक मानसिक ४. साता वेदना द्वार १. साता २. असाता ३. साता असाता रूप तीन प्रकार की वेदना का कथन चौथे द्वार में किया गया है । ५. दु:ख वेदना द्वार - पांचवें द्वार में सुख, दुःख और अदुःखसुखा (सुख दुःख रूप) वेदना का प्रतिपादन है। ६. आभ्युपगमिकी और औपक्रमिकी वेदना द्वार छठे द्वार में इन दोनों प्रकार की वेदनाओं
Jain Education International
-
-
-
For Personal & Private Use Only
-
www.jainelibrary.org