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बाईसवाँ क्रियापद - अठारह पापों से जीव को लगने वाली क्रियाएं
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! एक जीव प्राणातिपात के अध्यवसाय से कितनी कर्म प्रकृतियाँ बाँधता है?
उत्तर - हे गौतम! एक जीव प्राणातिपात से सात अथवा आठ कर्म प्रकृतियाँ बांधता है। एवं णेरइए जाव णिरंतरं वेमाणिए।
भावार्थ - इसी प्रकार एक नैरयिक से लेकर एक वैमानिक देव तक के प्राणातिपात के अध्यवसाय से होने वाली कर्म प्रकृतियों के बन्ध का कथन करना चाहिए।
विवेचन - जब आयुष्य कर्म का बन्ध नहीं होता तब जीव सात कर्म प्रकृतियों का बन्ध करता है और जब आयुष्य का बन्ध करता है तब जीव आठों कर्म प्रकृतियाँ बांधता है।
जीवा णं भंते! पाणाइवाएणं कइ कम्मपगडीओ बंधंति? गोयमा! सत्तविहबंधगा वि अट्टविहबंधगा वि। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! अनेक जीव प्राणातिपात से कितनी कर्म प्रकृतियाँ बांधते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! अनेक जीव प्राणातिपात से सप्तविध कर्म प्रकृतियाँ भी बांधते हैं और अष्टविध कर्म प्रकृतियाँ भी बांधते हैं।
विवेचन - बहुवचन में अनेक जीवों के बंध के विचार में सामान्य रूप से जीव पद की अपेक्षा सात प्रकृतियों का बंध करने वाले और आठ प्रकृतियों का बन्ध करने वाले बहुत जीव होते हैं अत: दोनों स्थानों पर बहुवचन रूप एक ही भंग होता है।
णेरइया णं भंते! पाणाइवाएणं कइ कम्मपगडीओ बंधंति? ... गोयमा! सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा, अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधए य, अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! अनेक नैरयिक प्राणातिपात से कितनी कर्म प्रकृतियाँ बांधते हैं ?
उत्तर - हे गौतम! वे नैरयिक सप्तविध कर्म प्रकृतियाँ बांधते हैं अथवा अनेक नैरयिक सप्तविध कर्म प्रकृतियों के बन्धक होते हैं और एक नैरयिक अष्टविध कर्म बन्धक होता है, अथवा अनेक नैरयिक सप्तविध कर्मबन्धक होते हैं और अनेक अष्टविध कर्मबन्धक भी होते हैं।
विवेचन - नैरयिकों में सात प्रकृतियों का बन्ध करने वाले अवस्थित ही होते हैं क्योंकि हिंसादि परिणाम वाले बहुत जीवों को सुदैव सात. प्रकृतियों का बन्ध अवश्य होता है इसलिए जब एक भी नैरयिक आठ प्रकृतियों को बांधने वाला नहीं होता है तब "सभी नैरयिक सात प्रकृतियाँ बांधने वाले होते हैं" - यह एक भंग होता है। जब एक नैरयिक आठ प्रकृतियाँ बांधने वाला होता है और शेष सभी सात प्रकृतियाँ बांधने वाले होते हैं तब "अनेक नैरयिक सात प्रकृतियों को बांधने वाले और एक
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