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सत्तावीसइमं कम्मवेयवेयगपयं
सत्ताईसवाँ कर्मवेद वेदक पद कड़ णं भंते! कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ?
गोयमा! अट्ठ कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ।तंजहा - णाणावरणिजं जाव अंतराइयं, एवं णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! कर्म प्रकृतियाँ कितनी कही गई हैं ?
उत्तर - हे गौतम! कर्म प्रकृतियाँ आठ कही गई हैं। वे इस प्रकार हैं - ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय। इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर यावत् वैमानिकों तक के आठ कर्म प्रकृतियाँ कही गई हैं।
जीवे णं भंते! णाणावरणिज कम्मं वेएमाणे कइ कम्मपगडीओ वेएइ? . गोयमा! अट्ठविहवेयए वा सत्तविहवेयए वा, एवं मणूसे वि। अवसेसा एगत्तेण वि पुहुत्तेण वि णियमा अट्ट कम्मपगडीओ वेदेति जाव वेमाणिया।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म का वेदन करता हुआ जीव कितनी कर्म प्रकृतियों का वेदन करता है ?
उत्तर - हे गौतम! ज्ञानावरणीय कर्म का वेदन करता हुआ जीव आठ या सात कर्म प्रकृतियों का वेदन करता है ? इसी प्रकार मनुष्य के विषय में समझना चाहिए। शेष सभी जीव यावत् वैमानिक तक एक वचन और बहुवचन की अपेक्षा नियम से आठ कर्म प्रकृतियों का वेदन करते हैं।
जीवा णं भंते! णाणावरणिजं कम्मं वेएमाणा कइ कम्मपगडीओ वेदेति?.
गोयमा! सव्वे नि ताव होजा अट्टविहवेयगा १, अहवा अट्ठविहवेयगा य सत्तविहवेयए य २, अहवा अट्ठविहवेयगा य सत्तविहवेयगा य ३, एवं मणूसा वि। दरिसणावरणिजं अंतराइयं च एवं चेव भाणियव्वं।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! बहुत जीव ज्ञानावरणीय कर्म का वेदन करते हुए कितनी कर्म प्रकृतियों का वेदन करते हैं?
उत्तर - हे गौतम! १. सभी जीव आठ कर्म प्रकृतियों के वेदक होते हैं २. अथवा कई जीव आठ कर्म प्रकृतियों के वेदक होते हैं और कोई एक जीव सात कर्म प्रकृतियों का वेदक होता है, ३. अथवा
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