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तेईसवाँ कर्म प्रकृति पद - द्वितीय उद्देशक - कर्मों की मूल एवं उत्तर प्रकृतियाँ
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अपर्याप्तक रूप-शरीर और इन्द्रिय पर्याप्ति पूर्ण करने में समर्थ और उच्छ्वास पर्याप्ति पूर्ण करने में असमर्थ जीव ऐसी स्थिति बांधते हैं ? यह किस प्रकार जाना जा सकता है कि.शरीर और इन्द्रिय पर्याप्ति पूरी करने में समर्थ जीव जघन्य स्थिति बांधता है परन्तु उससे हीन स्थिति नहीं बांधता? यह युक्ति से जाना जा सकता है जो इस प्रकार है - "सभी प्राणी पर भव का आयुष्य बांध कर मृत्यु को प्राप्त होते हैं बिना पर भव का आयुष्य बांधे कोई जीव मरता नहीं है और परभव के आयुष्य का बंध औदारिक, वैक्रिय और आहारक काय योग में वर्तते प्राणी को होता है परन्तु कार्मण या औदारिक मिश्र योग में वर्तते हुए जीव को नहीं होता।" इस संबंध में मूल टीकाकार श्री हरिभद्रसूरिजी कहते हैं -
"जेणोरालियाईणं तिण्हं सरीराणं कायजोगे वट्टमाणो आउयबंधगो, न कम्मए ओरालियमिस्से वा"
विशिष्ट औदारिक आदि काय योग शरीर और इन्द्रिय पर्याप्ति से पर्याप्त जीवों को होता है किन्तु केवल शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त जीव को नहीं होता। इसलिए यह सिद्ध होता है कि शरीर पर्याप्ति और इन्द्रिय पर्याप्ति से पर्याप्त होने पर ही जीव का मरण होता है शेष का नहीं अतः शरीर और इन्द्रिय पर्याप्ति पूरी करने में समर्थ ऐसी जघन्य स्थिति बांधते हैं किन्तु उससे हीन स्थिति नहीं बांधते हैं। इस प्रकार जघन्य स्थिति का बंध करने वाले के विषय में कहा है। अब उत्कृष्ट स्थिति बंध करने वाले के विषय में पूछते हैं -
उक्कोसकालट्ठिइयं णं भंते! णाणावरणिजं कम्मं कि णेरइओ बंधइ, तिरिक्खजोणिओ बंधइ, तिरिक्खजोणिणी बंधइ, मणुस्सो बंधइ, मणुस्सिणी बंधइ, . देवो बंधइ, देवी बंधइ?
गोयमा! णेरइओ वि बंधइ जाव देवी वि बंधइ।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले ज्ञानावरणीय कर्म को क्या नैरयिक बांधता है, तिर्यंच बांधता है, तिर्यचिनी बांधती है, मनुष्य बांधता है, मनुष्य स्त्री बांधती है, देव बांधता है देवी बांधती है।
उत्तर - हे गौतम! उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले ज्ञानावरणीय कर्म को नैरयिक भी बांधता है यावत् देवी भी बांधती है।
केरिसए णं भंते! णेरइए उक्कोसकालविइयं णाणावरणिजं कम्मं बंधड?
गोयमा! सण्णी पंचिंदिए सव्वाहिं पजत्तीहिं पजत्ते सागारे जागरे सुत्तो (ओ)वउत्ते मिच्छादिट्ठी कण्हलेसे य उक्कोससंकिलिट्ठपरिणामे ईसिमझिमपरिणामे वा, एरिसए णं गोयमा! णेरइए उक्कोसकालट्ठिइयं णाणावरणिजं कम्मं बंधइ।
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