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________________ १०६ प्रज्ञापना सूत्र tattatottatolettolelated alatatalaletatatata . विवेचन - स्पर्श दो प्रकार के हैं - १. प्रशस्त और २. अप्रशस्त। आठ स्पर्शों में से मृदु, लघु, स्निग्ध और उष्ण रूप प्रशस्त स्पर्श हैं और कर्कश, गुरु, रूक्ष और शीत रूप अप्रशस्त स्पर्श हैं। प्रशस्त स्पर्शों की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के एक सप्तांश और उत्कृष्ट स्थिति दस कोडाकोडी सागरोपम है। अबाधाकाल एक हजार वर्ष का और अबाधाकाल हीन कर्म स्थिति कर्म दलिक निषेक समझना चाहिए। अप्रशस्त स्पर्शों की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के दो सप्तांश और उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की है। अबाधाकाल दो हजार वर्ष का है। अबाधाकाल हीन कर्म स्थिति कर्म दलिक निषेक समझना चाहिए। ___अगुरुलहुमाणाए जहा छेवट्ठस्स, एवं उवघायणामाए वि, पराघायणामाए वि एवं चेव। भावार्थ - अगुरुलघु नाम कर्म की स्थिति सेवार्त्त संहनन की स्थिति के समान समझना, इसी प्रकार उपघात नाम कर्म और पराघात नाम कर्म की स्थिति के विषय में भी समझना चाहिए। विवेचन - अगुरुलघु, उपघात और पराघात नामकर्म की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के २- भाग और उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की है। अबाधाकाल दो हजार वर्ष का और कर्म स्थिति में से अबाधाकाल कम करने पर शेष कर्म निषेक काल है। णिरयाणुपुब्बीणामाए पुच्छा? गोयमा! जहण्णेणं सागरोवमसहस्सस्स दो सत्तभागा पलिओवमस्स असंखिजइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं वीस सागरोवमकोडाकोडीओ, वीस य वाससयाइं अबाहा०। तिरियाणुपुव्वीए पुच्छा? गोयमा! जहण्णेणं सागरोवमस्स दो सत्तभागा पलिओवमस्स असंखिजइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, वीस य वाससयाइं अबाहा०। मणुयाणुपुब्बीणामाए णं पुच्छा? गोयमा! जहण्णेणं सागरोवमस्स दिवढं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखिजइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं पण्णरस सागरोवमकोडाकोडीओ, पण्णरस वाससयाइं अबाहा। देवाणुपुवीणामाए पुच्छा? गोयमा! जहण्णेणं सागरोवमसहस्सस्स एगं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखिजइभागेणं ऊणयं , उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ, दस य वाससयाई अबाहा०। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! नरकानुपूर्वी नाम कर्म की स्थिति कितने काल की कही गई हैं ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004096
Book TitlePragnapana Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size8 MB
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