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________________ ९२ प्रज्ञापना सूत्र गोयमा! जहण्णेणं सागरोवमस्स तिण्णि सत्तभागा. पलिओवमस्स असंखिजइभागेणं ऊणिया, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, तिण्णि य वाससहस्साई अबाहा, अबाहूणिया कम्मट्टिई कम्मणिसेगो। . दसणचउक्कस्स णं भंते! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, तिण्णि य वाससहस्साई अबाहा०॥६१९॥ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! निद्रापंचक कर्म की स्थिति कितने काल की कही है? उत्तर - हे गौतम! निद्रापंचक कर्म की स्थिति जघन्य पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग कम, तीन सप्तांश (३.) सागरोपम की है और उत्कृष्ट तीस कोडाकोडी सागरोपम की है। उसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का तथा सम्पूर्ण कर्मस्थिति काल में से अबाधाकाल को कम करने पर शेष कर्मनिषेक काल है। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! दर्शनचतुष्क कर्म की स्थिति कितने काल की कही है? ' . .. उत्तर - हे गौतम! दर्शनचतुष्क दर्शनावरणीय कर्म की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट तीस कोडाकोडी सागरोपम की है। उसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का हैं और अबाधाकाल न्यून कर्म स्थिति कर्म का निषेक काल है। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में दर्शनावरणीय कर्म के ९ भेदों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति तथा अबाधाकाल और कर्म निषेक काल का कथन किया गया है। निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचला प्रचला और स्त्यानगृद्धि, इन पांच प्रकार की निद्राओं की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम (न्यून) सागरोपम के तीन सप्तमांश यानी एक सागरोपम के सात भाग करें उसमें से तीन भाग अर्थात् सातिया तीन भाग (1) की होती है। चार दर्शन (चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन) की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की और सभी (नौ ही भेदों) की उत्कृष्ट स्थिति ३० कोडाकोडी (कोटाकोटि) सागरोपम की होती है। अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है। निषेक काल तीस कोटाकोटि सागरोपम में तीन हजार वर्ष कम है। सायावेयणिजस्स इरियावहियं बंधगं पडुच्च अजहण्णमणुक्कोसेणं दो समया, संपराइयबंधगं पडुच्च जहण्णेणं बारस मुहुत्ता, उक्कोसेणं पण्णरस सागरोवमकोडाकोडीओ, पण्णरसवाससयाई अबाहा०। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004096
Book TitlePragnapana Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size8 MB
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