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________________ तेईसवाँ कर्म प्रकृति पद - द्वितीय उद्देशक कर्मों की मूल एवं उत्तर प्रकृतियाँ करने और छोड़ने संबंधी लब्धि उत्पन्न होती है जो उच्छ्वास पर्याप्ति के सिवाय अपना कार्य नहीं करती। जैसे बाण फेंकने की शक्ति वाला भी धनुष को ग्रहण करने की शक्ति के सिवाय फैंक नहीं सकता है उसी प्रकार उच्छ्वास पर्याप्ति उत्पन्न करने के लिए उच्छ्वास नाम कर्म का उपयोग है। नाम कर्म की शेष १-१ प्रकृति इस प्रकार है - — आप नाम - जिस कर्म के उदय से जीव का शरीरं उष्ण न होकर भी उष्ण प्रकाश करे। सूर्य के मण्डल में रहने वाले पृथ्वीकाय के जीव ऐसे ही हैं। उनके आतप नाम कर्म का उदय है। वे स्वयं उष्ण न होते हुए भी उष्ण प्रकाश देते हैं। उद्योत नाम कर्म - जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर शीतल प्रकाश करने वाला हो, उसे उद्योत नाम कर्म कहते हैं । चन्द्रमण्डल, ज्योतिषी चक्र, रत्न, प्रकाश करने वाली औषधियाँ और लब्धि से वैक्रिय रूप धारण करने वाला शरीर, ये सब उद्योत नाम कर्म वाले होते हैं । विहायोगति - विहायसा गति-आकाश में गमन करना विहायोगति है । विहायोगति दो प्रकार की कही गई है १. प्रशस्त (शुभ) और २. अप्रशस्त (अशुभ)। जिस कर्म के उदय से जीव हंस, हाथी और वृषभ की चाल के समान चले, उसे प्रशस्त (शुभ) विहायोगति नाम कर्म कहते हैं। जिस . कर्म के उदय से जीव ऊँट या गधे की चाल जैसा चले, उसे अप्रशस्त (अशुभ) विहायोगति नाम कर्म कहते हैं। त्रस नाम जो जीव त्रास पाते हैं गर्मी आदि से पीड़ित होकर धूप-छाया का सेवन करने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं। ऐसे बेइन्द्रिय आदि जीव त्रस कहलाते हैं। जिस कर्म के उदय से जीव को त्रस का शरीर मिले, उसे त्रस नाम कहते हैं। - ८७ ***** Jain Education International स्थावर नाम - जिस कर्म के उदय से स्थावर शरीर की प्राप्ति हो उसे स्थावर नाम कर्म कहते हैं । स्थावर एकेन्द्रिय जीव सर्दी और गर्मी से अपना बचाव करने के लिए चल फिर नहीं सकते। जैसे पृथ्वी, पानी आदि के जीव । सूक्ष्म नाम जिस कर्म के उदय से बहुत से प्राणियों के ( असंख्यात औदारिक) शरीर इकट्ठे होने पर भी छद्मस्थों के इन्द्रिय गोचर ( किसी भी इन्द्रिय का विषय) नहीं होता हों, मात्र विशिष्ट ज्ञानियों के द्वारा ही ग्राह्य होता हो, उसे सूक्ष्म नाम कर्म कहते हैं। इस कर्म का उदय मात्र एकेन्द्रिय जीवों (पांचों स्थावरों) में ही होता है। - - इस प्रकार का अर्थ प्रज्ञापना सूत्र पद प्रथम में किया गया है। बादर नाम - जिस कर्म के उदय से छद्मस्थों के इन्द्रियों से ग्राह्य (पांचों में से कोई भी इन्द्रिय) शरीर की प्राप्ति हो अथवा जो कर्म बादरता के परिणाम को उत्पन्न करता है उसे बादर नाम कर्म कहते हैं। सभी स कायिक जीवों के बादर नाम कर्म का ही उदय होता है। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004096
Book TitlePragnapana Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size8 MB
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