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________________ 392 प्रज्ञापना सूत्र दव्वट्ठपएसट्ठयाए-सव्वत्थोवा आहारगसरीरा दव्वट्ठयाए, वेउब्वियसरीरा दव्वट्ठयाए असंखिजगुणा, ओरालियसरीरा दव्वट्ठयाए असंखिज्जगुणा ओरालियसरीरेहितो दव्वट्ठयाएहितो आहारगसरीरा पएसट्टयाए अणंतगुणा, वेउव्वियसरीरा पएसट्ठयाए असंखिज्जगुणा, ओरालियसरीरा पएसट्टयाए असंखिजगुणा, तेयाकम्मा दोवि तुल्ला दव्वट्ठयाए अणंतगुणा, तेयगसरीरा पएसट्टयाए अणंतगुणा, कम्मगसरीरा पएसट्ठयाए अणंतगुणा॥५८०॥ ___ भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण इन पांच शरीरों में से, द्रव्य की अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से तथा द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से, कौन, किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है? उत्तर - हे गौतम! द्रव्य की अपेक्षा से - सबसे अल्प आहारक शरीर हैं। उनसे वैक्रिय शरीर, द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यात गुणा हैं। उनसे औदारिक शरीर द्रव्य की अपेक्षा से, असंख्यात गुणा हैं। तैजस और कार्मण शरीर दोनों तुल्य-बराबर हैं, किन्तु औदारिक शरीर से द्रव्य की अपेक्षा से अनन्त गुणा है। प्रदेशों की अपेक्षा से - सबसे कम प्रदेशों की अपेक्षा से आहारक शरीर हैं। उनसे प्रदेशों की अपेक्षा से वैक्रिय शरीर असंख्यात गुणा हैं। उनसे प्रदेशों की अपेक्षा से औदारिक शरीर असंख्यात गुणा हैं। उनसे तैजस शरीर प्रदेशों की अपेक्षा से अनन्त गुणा हैं। उनसे कार्मण शरीर प्रदेशों की अपेक्षा से अनन्त गुणा हैं। द्रव्य एवं प्रदेशों की अपेक्षा से - द्रव्य की अपेक्षा से, आहारक शरीर सबसे अल्प हैं - उनसे वैक्रिय शरीर द्रव्यों की अपेक्षा से असंख्यात गुणा हैं। उनसे औदारिक शरीर द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यात गुणा हैं। औदारिक शरीरों से द्रव्य की अपेक्षा से आहारक शरीर प्रदेशों की अपेक्षा से अनन्त गुणा हैं। उनसे वैक्रिय शरीर प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यात गुणा हैं उनसे औदारिक शरीर प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यात गुणा हैं। तैजस और कार्मण, दोनों शरीर द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य बराबर-बराबर हैं तथा पूर्वोक्त बोल से द्रव्य की अपेक्षा से अनन्त गुणा हैं। उनसे तैजस शरीर प्रदेशों की अपेक्षा से अनन्त गुणा हैं। उनसे कार्मण शरीर प्रदेशों की अपेक्षा से अनन्त गुणा हैं। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में द्रव्य, प्रदेश और द्रव्य प्रदेश शामिल की अपेक्षा पांचों शरीरों के अल्पबहुत्व का कथन किया गया है, जो इस प्रकार है - 1. द्रव्य की अपेक्षा - सबसे थोड़े आहारक शरीर द्रव्यार्थ रूप है यानी आहारक शरीर-शरीर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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