________________ इक्कीसवां अवगाहना-संस्थान पद - प्रमाण द्वार 375 गोयमा! पमत्त संजय सम्महिट्ठी पजत्तग संखिजवासाउय कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय मणूस आहारग सरीरे, णो अपमत्त संजय सम्मट्टिी० कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय मणूस आहारग सरीरे। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! 'यदि संयत-सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के आहारक शरीर होता है तो क्या प्रमत्त संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के होता है अथवा अप्रमत्त संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के होता है ? उत्तर - हे गौतम! प्रमत्त संयत-सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के आहारक शरीर होता है, अप्रमत्तसंयत-सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के नहीं होता है। जइ पमत्त संजय सम्मट्टिी० संखिज वासाउय कम्मभूमग० मणूस आहारग सरीरे किं इड्डिपत्त पमत्त संजय सम्मट्टिी० कम्मभूमग संखिजवासाउय गब्भवक्कंतिय मणूस आहारग सरीरे, अणिड्डिपत्तपमत्त संजय० कम्मभूमग संखिज्जवासाउय गब्भवक्कंतिय० आहारग सरीरे? . गोयमा! इड्डिपत्त पमत्त संजयसम्मट्टिी० संखिजवासाउय कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय मणूस आहारग सरीरे णो अणिडिपत्त पमत्त संजय सम्मट्ठिी० संखिज्जवासाउय कम्मभूमग गब्भवक्कंतिय मणूस आहारग सरीरे। कठिन शब्दार्थ - इडिपत्त - ऋद्धिप्राप्त-जिन्हें आमर्ष औषधि आदि लब्धियाँ प्राप्त हो। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! यदि प्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के आहारक शरीर होता है तो क्या ऋद्धिप्राप्त प्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के होता है अथवा अनृद्धिप्राप्त-प्रमत्तसंयत-सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क-कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के होता है? उत्तर - हे गौतम! ऋद्धिप्राप्त प्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों के आहारक शरीर होता है किन्तु अनृद्धि प्राप्त प्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क गर्भज मनुष्य के नहीं होता है। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में आहारक शरीर के स्वामी (अधिकारी) का वर्णन किया गया है। कर्मभूमि के गर्भज सम्यग्-दृष्टि ऋद्धि प्राप्त प्रमत्त संयत मनुष्य को ही आहारक शरीर होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org