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________________ . ३५६ प्रज्ञापना सूत्र __जइ संखिजवासाउय गब्भवक्कंतिय तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय वेउव्विय सरीरे किं पजत्तग संखिजवासाउय गब्भवक्कंतिय तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय वेउव्विय सरीरे, अपजत्तग संखिजवासाउय गब्भवक्कंतिय तिरिक्ख जोणिय पंचिंदिय वेउव्वियसरीरे? गोयमा! पजत्तग संखिजवासाउय गब्भवक्कंतिय तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय वेउब्विय सरीरे? णो अपजत्तग संखिजवासाउय गब्भवक्कंतिय तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय वेउव्विय सरीरे। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! यदि संख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज तिर्यंच योनिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है तो क्या पर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है अथवा अपर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क-गर्भज पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है? उत्तर - हे गौतम! पर्याप्तक-संख्यात वर्षायुष्क गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है, . किन्तु अपर्याप्तक संख्यात वर्षायुष्क गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर नहीं होता है। जइ संखिज वासाउय गब्भवक्कंतिय तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय वेउव्विय सरीरे, किं जलयर संखिजवासाउय गब्भवक्कंतिय तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय वेउब्विय सरीरे, थलयर संखिजवासाउय गब्भवक्कंतिय तिरिक्खजोणिय पंचिंदिय वेउव्विय सरीरे, खहयर संखिजवासाउय गब्भवक्कंतिय तिरिक्ख जोणिय पंचिंदिय वेउव्विय सरीरे? गोयमा! जलयर संखिजवासाउय गब्भवक्कंतिय तिरिक्खजोणिय-पंचिंदिय वेउव्विय सरीरे वि, थलयर संखिजवासाउय गब्भवक्कंतिय तिरिक्ख-जोणिय पंचिंदिय वेउव्विय सरीरे वि, खहयर संखिजवासाउय गब्भवक्कंतिय तिरिक्ख-जोणिय पंचिंदिय वेउव्विय सरीरे वि। भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! यदि संख्यात वर्षायुष्क गर्भज तिर्यंचयोनिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है तो क्या जलचर-संख्यात वर्षायुष्क गर्भज तिर्यंचयोनिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है, स्थलचर संख्यात वर्षायुष्क गर्भज तिर्यंचयोनिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है अथवा खेचर संख्यात वर्षायुष्क गर्भज तिर्यंचयोनिक पंचेन्द्रियों के वैक्रिय शरीर होता है? उत्तर - हे गौतम! जलचर संख्यात वर्षायुष्क गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रियों के भी वैक्रिय शरीर होता है, स्थलचर संख्यात वर्षायुष्क गर्भज तिर्यंचयोनिक पंचेन्द्रियों के भी वैक्रिय शरीर होता है तथा खेचरसंख्यात वर्षायुष्क गर्भज तिर्यंचयोनिक पंचेन्द्रियों के भी वैक्रिय शरीर होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004095
Book TitlePragnapana Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages412
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size9 MB
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